अर्थशास्त्र के आधुनिक सिद्धान्त | Arthashastra Ke Aadhunik Siddhant

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Book Image : अर्थशास्त्र के आधुनिक सिद्धान्त  - Arthashastra Ke Aadhunik Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तथशास्त्र का स्वरूप तथा क्षेत्र प्ू इस परिभाषा के तीन झावश्यक भाग हैं : (१) लक्ष्य दिए हुए हैं। लक्ष्य का ूथ वह उद्देश्य है जिसे व्यक्ति प्राप्त करन] चाहता है । इस परिभाषा के श्रनु- सार श्रर्थशास््र उद्देश्यों का निणुय नहीं करता । वह उन्हें दिया डइुश्ा मान लत है । इसका तात्पर्य यह हुआ कि श्रथशास्त्र उद्देश्य निश्चित करने का काम राजन॑तिशों, नीतिशों या व्यक्तियों पर छोड़ देता है श्रौर केवल इस बात का श्रष्ययन करता है कि ये लक्ष्य किस प्रकार प्राप्त किए जा सकते हैं । दूसरे शब्द में, श्रथशास्र शरादर्श विज्ञान नहीं है, बल्कि वास्तविक, है ।श्र्थशास्त्र लक्ष्यों को « क्‍यों निशिचत नहीं करता श्रौर दिया डा मान लेता है--इस पर श्रागे विचार किया जायगा । यहाँ इतना समझ लेना आवश्यक है कि झधशास्त्र लक्ष्यों को दिया. हुद्ा मान लेता है, उनको निशिचत नहीं करता । हो सकता है कि श्रन्तिस लक्ष्य सुख हो या दुम्ख,; श्रनन्तर उंदेश्य समाजबाद हो या पूंजीवाद ्रौर उपस्थित उद्देश्य बुशशट पहनना हो या कोट, पर जहाँ तक श्रर्धशास्र का क्षेत्र है; ये लद्ष्य या उद्देश्य दिये हुए हैं। अ्रर्धशास्त्र यह नहीं बताता [कि इनमें से कौन ्रच्छे हैं श्रौर कौन बुरे, क्या करना चाहिए श्रौर क्या नहीं । ९. * (२) अर्थशास्र आवश्यकताओं (रा 5) की संतुष्टि का झथ्ययन करता है,जब साधन दुर्लम होते हैं । यह श्रर्धशास्त्र की मूल विषय-वस्तु की आर व्यान श्राकर्षित करता है, जो यह है कि आवश्यकताओं को संतुष्ट करने वाले साधनों, जैसे खाद्य- पदाथ, वस्त्र, सुन्दर वस्तुएं: दि, की पूर्ति इनकी माँग से कम है (अ्र्धात्‌ ये दुलंभ हैं) । परिमाषा इस तथ्य पर बल देती है कि आर्थिक क्रियाएँ तभी संभव हैं जब साधन दुलंभ हों । चुनाव का कारण साधनों की दुर्लमता है । त्रगर हमें दावश्यक साधन श्रौर समय दुलभ न होते और अगर हम इन्हें चाहने पर प्राप्त कर सकते, तो चुनाव की समस्या न उठती । यहाँ इस बात को समक लेना आवश्यक है कि श्रगर एक वस्तु की माँग उसकी पूर्ति से थोड़ा भी अधिक है, तो वह दुलभ है, भले उसकी पूर्ति करोड़ों इकाइयों में हो । इसके विपरीत, श्रगर पूर्ति केवल पाँच इकाइयाँ हों श्रौर माँग चार इकाइयाँ, तो वह प्रचुर परिमाण में उपलब्ध है । मुख्य बात यह है कि झ्रार्थिक क्रियाएँ या चुनाव की समस्या तभी उठती है जब साधन श्र समय इुलभ हों ) कुछ वस्तुओं, जैसे इवा, पानी, धूप आदि, के बारे में चुनाव की समस्या नहीं उठती क्योंकि ये प्रचुर परिमाण में उपलब्ध हैं । झ्रतएव ये श्र्थशास्त्र के क्षेत्र में नहीं श्रातीं | (३) अपनी परिभाषा में प्रो० रॉबिन्स साधनों के वैकल्पिक उपयोग पर भी बल देते हैं क्योंकि श्रगर साधनों का केवल एक ही उपयोग हो, तो व्यक्ति की चुनाव करने की क्षमता नियंत्रित (#८४६8८६६०) हो जायगी। अगर टीक




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