समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति | Samajavad Aur Rashtriy Kranti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४. ) गरमदन वालों के मसमधक इलाहाबाद से दो पत्र भी निकाल रहे थे । इनमें से एक तो उदू' साप्ताहिक “स्वराज्य” था, जिसके नेक सम्पादक जेल गये, श्र दूसरा हिंदी “कर्मयोगी'” था । इसके सम्पादक थे पं० सुदरलाल जिनको अपनी राजनीतिक इलचलां कें कारण विश्व-विद्यालय से निकाल दिया गया था शोर जो इसलिये ्रपनी डिग्री भी नहीं ले पाथ थे । ऐसे वातावरण में नरेन्द्रदेव जी रहते श्रौर चलते फिरते थे । वे एक अ्रच्छे विद्यार्थी थे श्रार जो क्रांतिकारी पुस्तकें उनके हाथ पड़ जाती थीं, उन्हे वे बड़े चाव से पढ़ते थे । क्रोपोटकिन की “एक क्रान्तिकारी के संस्मरण”” दरार “पारस्परिक सहायता” जैसी पुस्तक कुमारस्वामी के राष्ट्रीय श्रादशंवाद विपयक लेख, अरविंद घोष श्रार लाला हरदयाल की रचनाये शोर तुर्गनेव की कहानिया उन्हें विशेष पिय थी | गेरीवाल्डी की जीवनी और मैजिनी का ले जिल्‍्दां म छपा साहित्य जिसमें उसकी “मनुष्य के कर्तव्य” नामक रचना भी थी, उन्होंने उत्माहद श्रोर लगन से पढ़े । श्रौर भी उन्होंने श्रनेक पुस्तकें पढ़ा जिनमे फँच क्रांवि-विषयक ग्रंथ ब्लंशली की “राज्य की थ्यूरी” श्रोर वढुत सा रूस ,का झ्राजकतावादी साहित्य था जहां के नेतात्रों श्रोर लोगों पर सन्‌ १९६०५ की क्रांति से भयंकर दमन ने एक नवीन दिव्य ज्योति छिटका दी थी । यह बात ध्यान देने की है कि नरेन्द्रदेव जी के समकालीन विद्यार्थियों में पंडित गोविं दबल्लभ पंत, डाक्टर केलाशनाथ काटजू, बाबू शिबप्रसाद गुप्त, श्रौर महाकोशल प्रांतीय कांग्रेस कमेठी के प्रधान ठाकुर छेदीलाल थे । इनमें से पं» गोविदवल्लभ पंत उस समय बवी० ए० मं थे, जव॒ नरेन््रदेव जी फस्ट इयर मे थे; डाक्टर काटजू एम० ए० में पढ़ते थे श्रोर बाबू शिवप्रसाद गुप्त और




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