एकांकी - कला | Ekanki Kala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
207
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साहित्य में प्रगतिशीलता ओर जीवन ७
२. यह मावसवादी सिद्धान्तों का साहिस्यिक प्रोपेगेन्डा है, जिसका
क्षेत्र विदेशी होने के कारण भारतीय भावना को चोट पहुँचाता है ।
३. यह ईश्वर में श्रविश्वास करता इु्रा नैतिकता को टकोसला
मानता है ।
४. यौन-भावना का श्रश्लील रूप चित्रित करता है, अतः चवननी
टाइप का है ।
५. ्राध्यात्मिक सुखों की श्रपेक्षा भोतिक सुखों में विश्वास करता दे
शत: निकृष्ट श्रीर श्रस्थायी है ।
६. साहित्य के शाश्वत तत्वों की उपेक्षा करके युग-ध्म से ही
चिपटा रहता दे श्रतः सामयिक है ।
७. भफोपड़ी श्रौर मजदूरों में उलक कर प्रेम-भावना का तिरस्कार
करता है, श्रत: चणिक हे ।
८. शांति में नहीं संघरष में विश्वास करता है, श्रहिंसा नहीं हिंसा
में श्रास्था रखता है, निर्माण के बदले उन्मूलन में श्रधिक रुचि रखता
है श्रतः हानिकारक दे ।
६. श्रतीत की संस्कृति को बुजु आरा कह कर वतमान से मोह करता
हे श्रतः बिना नींव की इमारत दै जिसके गिरने में समय न लगेगा ।
१०, भावुकता तथा कला इत्यादि का 5िद्रोह करके केवल चाँदी
के टुकड़ों से साहित्य का मूल्याझन करता दे, श्रतः श्रकल्याणकारी है ।
उपयु क्त श्रात्तेप श्राघारदीन नहीं हैं । श्राज हिन्दी साहित्य में साहित्य
श्रीर जीवन का श्रटूट सम्बन्ध बताकर कुछ श्रसाहित्यिक पेशेवर प्रोपेगेंडिस्ट
साहित्य को राजनीतिक प्रचार के जिस निम्न स्तर पर लिये जा रहे हैं,
उसका प्रभाव बड़ा ही भयावह श्रोौर घातक होगा ।
सादित्य मूलतः भाषा के माध्यम द्वारा जीवन की श्रभिव्यक्ति दे ।%
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