सर्वोदय - दर्शन | Sarwodya Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
94 MB
कुल पष्ठ :
464
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १६ )
आओर जा रहा सलिए अब निःशस्त्रीकरण होना चाहिए
भाज के युग की यह माँग है कि सिःशस्वीकरण के सिवा अत
मानवीय मूल्यों की स्थापना हो नहीं सकती । आइसनहावर .
के शब्दों में 11500 8100 15 06000 के 00087 1 11100,
पहले वीर-वृत्ति के विकास के लिए भोर निवछों के संरक्षण
के छिए श्य का प्रयोग होता था । आज शख्ा में से उसके ये
दोनों सांस्कृतिक मूल्य नष्ट हो गये हैं। हवाई जहाज से बम
फेंक देने में कोनसी वीर-वृत्ति रह गयी है ? आज संरक्षण के
स्थान पर आक्रमण के लिए शख्त्रों का प्रयोग होता है। इसलिए
शस्त्र का सांस्क्रतिक मूल्य पूर्णतः समाप्र हो गया है|
रे हक हे
शख््र की जो दालत है; वही हालत यंत्र की भी है । यंत्र
का भी सांस्कृतिक मूल्य समाप्त हो गया है । यंत्र की विशेषता
यह है कि वह सब चीज एक-सी बनाता छै । बटन एक-से; जूते
एक-से; पोशाक एक-सी । गधघा-मजूरी रोकने को यंत्र आया,
पर आज उसके चलते व्यक्तित्व का गला घुट रहा है। मानवीय
_ मूल्यों का हलास हो रहा पी, उितािा िएणाएा।कनननदस
दबाने का अथशास्त्र विकसित हो रहा ईै आर मानवीय कला
. समाप्त होती चल रही है । यंत्र जहाँ तक अभाव की पूर्ति करता .
है, वहाँ तक तो उसकी उपयोगिता मानी जा सकती है; पर
चहद केन्द्रीकरण को जन्म दे रहा है; का की अभिनृद्धि में रोड़े
अटका रहा है और उत्पादन में से मानवीय स्पशे; विएए0क्ा।
५0एछीद ह. िष्तेपएकएा को समाप्र करता जा रहा है । व्यक्तित्व
का विकास तो दूर रहा; उसके कारण मनुष्य का व्यक्तित्व ही.
' समाप्त होता जा रहा है । व्यक्तित्व का यह विलीनीकरण.
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