सर्वोदय - दर्शन | Sarwodya Darshan

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Sarwodya Darshan by दादा धर्माधिकारी - Dada Dharmadhikari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) आओर जा रहा सलिए अब निःशस्त्रीकरण होना चाहिए भाज के युग की यह माँग है कि सिःशस्वीकरण के सिवा अत मानवीय मूल्यों की स्थापना हो नहीं सकती । आइसनहावर . के शब्दों में 11500 8100 15 06000 के 00087 1 11100, पहले वीर-वृत्ति के विकास के लिए भोर निवछों के संरक्षण के छिए श्य का प्रयोग होता था । आज शख्ा में से उसके ये दोनों सांस्कृतिक मूल्य नष्ट हो गये हैं। हवाई जहाज से बम फेंक देने में कोनसी वीर-वृत्ति रह गयी है ? आज संरक्षण के स्थान पर आक्रमण के लिए शख्त्रों का प्रयोग होता है। इसलिए शस्त्र का सांस्क्रतिक मूल्य पूर्णतः समाप्र हो गया है| रे हक हे शख््र की जो दालत है; वही हालत यंत्र की भी है । यंत्र का भी सांस्कृतिक मूल्य समाप्त हो गया है । यंत्र की विशेषता यह है कि वह सब चीज एक-सी बनाता छै । बटन एक-से; जूते एक-से; पोशाक एक-सी । गधघा-मजूरी रोकने को यंत्र आया, पर आज उसके चलते व्यक्तित्व का गला घुट रहा है। मानवीय _ मूल्यों का हलास हो रहा पी, उितािा िएणाएा।कनननदस दबाने का अथशास्त्र विकसित हो रहा ईै आर मानवीय कला . समाप्त होती चल रही है । यंत्र जहाँ तक अभाव की पूर्ति करता . है, वहाँ तक तो उसकी उपयोगिता मानी जा सकती है; पर चहद केन्द्रीकरण को जन्म दे रहा है; का की अभिनृद्धि में रोड़े अटका रहा है और उत्पादन में से मानवीय स्पशे; विएए0क्ा। ५0एछीद ह. िष्तेपएकएा को समाप्र करता जा रहा है । व्यक्तित्व का विकास तो दूर रहा; उसके कारण मनुष्य का व्यक्तित्व ही. ' समाप्त होता जा रहा है । व्यक्तित्व का यह विलीनीकरण.




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