जमनालाल बजाज की डायरी पार्ट ५ | Jamanalal Bajaj Ki Dayari Part-5

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : जमनालाल बजाज की डायरी  पार्ट ५  - Jamanalal Bajaj Ki Dayari Part-5

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

काका कालेलकर - Kaka Kalelkar

No Information available about काका कालेलकर - Kaka Kalelkar

Add Infomation AboutKaka Kalelkar

रामकृष्ण बजाज - Ramkrishn Bajaj

No Information available about रामकृष्ण बजाज - Ramkrishn Bajaj

Add Infomation AboutRamkrishn Bajaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पौवत श्य देता शी उस्हों वा बस है । साय पूरी सुदादूदीलसिड दिए रियर हों हैं जाननसास की स्ोघावरू सी को मद प्यादा होगी है। सेविन सगाल था सगदन वरना, खेती, पथु्पालन, टुगर और षिजारत आईि दे द्वारा समाज को सम्हालना, समर्ध नाना छौर भिनन-शिनन वर्गों वे दीच सास हरय स्यापित बरके सहयोग ग सावेभौम बनाना, य? बाम दो बनिये वा ही है । गाघीजो में बनिये के थे रद युघ थे । ट्रमके क्सादा थह सोशोसर ते जस्विता और चातुयं से भरे हुए सेनारपति भी थे। दोदचिय तभी लड़ सकता है, जब थनियां उसे पूर्द- रीपारी बर देता है। यूरोप के गोदोलर सेनापति नेपोलियन ने बहा धान *पोना घलती है पेड पर ।'' गाधीजी ने नहा था कि सन्याप्रह बी सफतता वा आधार रता है रचसान्मफ बार्यप्रस पर । उन्होंने यटां तत्र कहा था वि मिरा ' रचन समय कार्यशेस अगर सारा राष्ट्र पूरी तरह से सफल कर दे, हो सत्याग्रह के बिता ही मैं आएकों रवराज्य ला दूगा 1” गाधीजी के इस रचनारमक कार्य बा पूरा सहत्व जानने वाले इने-शिने लोगो में भी जमनासालजी वा स्थान बहुत ऊचा था । यद गुण तो मनुध्य बी आस्तिवता में में ही प्रयद होता है । क्षत्रिय भले ही लडकर राज्य प्राप्त कर ले, राज्य चलाने वा बम भने ही क्षद्रियों का माना जाय, पर दर- असल वह है व्तिये दा ही याम । चार आधमो में जिस तरह अनुभय में मिद्ध हुवा है कि गृहस्थाधम ही गर्वेश्रेप्ठ है, उसी तरह हमें समझना चाहिए फि चार वर्णों में भी श्रेप्दता कट्ुल करनी चाहिए वेश्य-वर्ण थी । वैश्य-धम की साबेंभौमता के नीचे ही द्राह्मण-घ्म और क्षात्र-धर्म अपने- यपते वाम में कृताथ हो सकते है । 'वतिया गाधीजी' का सामर्थ्य किसमें है, महू अचूक देख सके थे 'बनिया-शिरोमणि जमनालालजी' हो । यह सब जाननेदाले लोग जर्मनालालजी वी वासरियमों के प्राथमिक वर्षों मे भी रचनात्मक प्रवृत्ति की और उनका झुकाव देख सकेंगे । इस प्रेरणा बो समझने के दाद ही हम खयाल वर सकने हैं कि जमनालातजी सारे देश में इतनी ते जी से क्यो घूमते थे ? देश के छोटे-वडे सब कार्यकर्ताओं बा संपकं साधकर उनके साथ हृदय की आत्मीयता कं से स्थापित करते थे । स्थ दबनान




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now