योग दर्पण | Yog Darpan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वाइमुखम्‌ १७ है | योग-विद्या सावभीमिक विद्या है। इसमें किसी देश, किसी जाति, किसी धमं के बंधन नहीं हैं. | यह सभी के लिये है। योग आपको कोरी परलोक की वतिं बताकर मन- सममौता नहीं करता | बह आपको जटिल मानसिक प्रश्नों की उलमन सुलमामे को नहीं कहता ! बह आपको कोरी पाठ- पूजा मे लगाकर यद्‌ नी कद्‌ देता फ इसका कल परलोक मे भित्तेगा । योग कोरा वितंडावाद नदीं टै । वष है एक अत्यंत प्रायोगिक विया, जिसके सीते द्री फल-सिद्धि को आशा वैध जातो है 1 भवन-निर्माण-कला, संगीत, शिल्प, चित्र-लेखन-कला आदि के समान वह मी तत्का फल देने- बाली एक कला है। यदि आप स्कूल-कॉलेजों में लड़कों को तरह-तरह के व्यायाम, खेल तथा सैनिकों को शसर-विदा सिखाने से कोई लाभ सममते दों, तो इससे दूसगुना लाभ इन्हें योंग-लाधन सिखाने से सममिए । पूर्वाक्त क्रियाओं से तो केवल शारीरिक वल श्नौर स्वास्थ्य की कुछ बृद्धिद्लोतो है, लेकिन योग-साधनों के सीखने और अभ्यास करने से शरोर, मन ओर चुद्धि, इन तीनो की शक्षियों को विकास होता है, जिससे आपकी स्वास्थ्य-इृद्धि, नोरोगता, दोर्धायुता दी नदीं होती, बल्कि आपका उन मानसिक शक्तियों पर अधिकार हो जाग दै, जिनके द्वारा श्राप धर-वैठे सव्र जगह का शाल




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