योग दर्पण | Yog Darpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वाइमुखम् १७
है | योग-विद्या सावभीमिक विद्या है। इसमें किसी देश,
किसी जाति, किसी धमं के बंधन नहीं हैं. | यह सभी के
लिये है। योग आपको कोरी परलोक की वतिं बताकर मन-
सममौता नहीं करता | बह आपको जटिल मानसिक प्रश्नों
की उलमन सुलमामे को नहीं कहता ! बह आपको कोरी पाठ-
पूजा मे लगाकर यद् नी कद् देता फ इसका कल परलोक
मे भित्तेगा । योग कोरा वितंडावाद नदीं टै । वष है एक
अत्यंत प्रायोगिक विया, जिसके सीते द्री फल-सिद्धि को
आशा वैध जातो है 1 भवन-निर्माण-कला, संगीत, शिल्प,
चित्र-लेखन-कला आदि के समान वह मी तत्का फल देने-
बाली एक कला है। यदि आप स्कूल-कॉलेजों में लड़कों को
तरह-तरह के व्यायाम, खेल तथा सैनिकों को शसर-विदा
सिखाने से कोई लाभ सममते दों, तो इससे दूसगुना लाभ
इन्हें योंग-लाधन सिखाने से सममिए । पूर्वाक्त क्रियाओं से तो
केवल शारीरिक वल श्नौर स्वास्थ्य की कुछ बृद्धिद्लोतो है,
लेकिन योग-साधनों के सीखने और अभ्यास करने से शरोर,
मन ओर चुद्धि, इन तीनो की शक्षियों को विकास होता है,
जिससे आपकी स्वास्थ्य-इृद्धि, नोरोगता, दोर्धायुता दी नदीं
होती, बल्कि आपका उन मानसिक शक्तियों पर अधिकार
हो जाग दै, जिनके द्वारा श्राप धर-वैठे सव्र जगह का शाल
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