रेडियो - नाट्य - शिल्प | Radio Natya Shilp
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ध्वनि-ताटक या रेडियो-नाटक ?
रेरियो-नाटकका माध्यम हमारे लिए जभी नया है, इसके लिए कोई
ऐसा नाम भी निरिचत नहीं हो सका है, जो उचित्त एव सर्वमान्य हो । रेडियो-
नाटदके करण-विधानपर प्राय उाउनेके पहले नामकरणके प्रदनपर विचार
कर रेना आयवस्यक उगता है । शिम-भिम विद्वानोने इसे भिन्न-भिन्न नाम
दिये हूं । या० रामकुमार व्मनि इसे “ब्वनि-नाटक' कहा है (“'आजकल',
जगस्त १९५१) । प्रो० रामचरण महेन्द्र इसे “ध्वनि-एकाकी' कहते हैं
('कल्पना', दिसम्बर १९५९२) । अधिक लोगोने इन्ही दोनो नामोके व्यव-
हार किये है, यो कुछ लोग इसे रेदियो-नाटक भी कहते है । हमे एक-एक
करके इन तीनों नामोपर विचार कर छेना चाहिए ।
'ध्तनि-नाटक'में प्रयुवत “ध्वनि दाव्द अनेकार्थ है। “सक्षिप्त हिदी-
दवब्दसागर'में इसके चार अर्थ दिये हुए हैं, जो इस प्रकार हे-- १. वह विषय,
जिसका गहण श्रवणेन्द्रियसे हो । यव्द । नाद । आवाज । २. शब्दका
स्फोट । आवाजकी गूंज । लय । ३. वह काव्य जिसमे वाच्यार्थकी अपेक्षा
व्यग्याथ॑ अधिक विधेपतावाला हो । ४ आशय । गूढ जर्थे । मतलब ।'
इसलिए “ध्वनि-नाटक से रेठियोसे प्रसारित होनेवाले नाटकका बोध नहीं
होता । यह सत्य है कि रेडियोसे प्रसारित किये जानेवाले नाटकोमे शब्द,
आवाग अथवा 'व्वनिकी ही प्रधानता होती है, पर रेडियो-नाटकके सभी उप-
करण इसके यन्तर्गत नही आ पाते । सगीत, जो रेडियो-नाटकका एक प्रधान
साघन है, की व्यजना “ध्वनिसे नहीं होती । सच कहा जाय, तो ध्वनि या
आवा द् (50प्तत-लीं८८ ) रेडियो-नाटकका केवल एक उपकरण है । अत.
रेडियोसे प्रसारित होनेवाले नाटककों 'ध्वनि-नाटक' कहना उचित नही जँचता ।
“घ्वनि-एकाकी' नाम तो रेडियो-नाटकोके ह। सबधमे श्प्रम उत्पन्न
कर देता है। यह स्रम बहुत लोगोमे है। लोग समझते है कि रेडियोसे
बम
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