रेडियो - नाट्य - शिल्प | Radio Natya Shilp

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Radio Natya Shilp by सिद्धनाथ कुमार - Siddhnath Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध्वनि-ताटक या रेडियो-नाटक ? रेरियो-नाटकका माध्यम हमारे लिए जभी नया है, इसके लिए कोई ऐसा नाम भी निरिचत नहीं हो सका है, जो उचित्त एव सर्वमान्य हो । रेडियो- नाटदके करण-विधानपर प्राय उाउनेके पहले नामकरणके प्रदनपर विचार कर रेना आयवस्यक उगता है । शिम-भिम विद्वानोने इसे भिन्न-भिन्न नाम दिये हूं । या० रामकुमार व्मनि इसे “ब्वनि-नाटक' कहा है (“'आजकल', जगस्त १९५१) । प्रो० रामचरण महेन्द्र इसे “ध्वनि-एकाकी' कहते हैं ('कल्पना', दिसम्बर १९५९२) । अधिक लोगोने इन्ही दोनो नामोके व्यव- हार किये है, यो कुछ लोग इसे रेदियो-नाटक भी कहते है । हमे एक-एक करके इन तीनों नामोपर विचार कर छेना चाहिए । 'ध्तनि-नाटक'में प्रयुवत “ध्वनि दाव्द अनेकार्थ है। “सक्षिप्त हिदी- दवब्दसागर'में इसके चार अर्थ दिये हुए हैं, जो इस प्रकार हे-- १. वह विषय, जिसका गहण श्रवणेन्द्रियसे हो । यव्द । नाद । आवाज । २. शब्दका स्फोट । आवाजकी गूंज । लय । ३. वह काव्य जिसमे वाच्यार्थकी अपेक्षा व्यग्याथ॑ अधिक विधेपतावाला हो । ४ आशय । गूढ जर्थे । मतलब ।' इसलिए “ध्वनि-नाटक से रेठियोसे प्रसारित होनेवाले नाटकका बोध नहीं होता । यह सत्य है कि रेडियोसे प्रसारित किये जानेवाले नाटकोमे शब्द, आवाग अथवा 'व्वनिकी ही प्रधानता होती है, पर रेडियो-नाटकके सभी उप- करण इसके यन्तर्गत नही आ पाते । सगीत, जो रेडियो-नाटकका एक प्रधान साघन है, की व्यजना “ध्वनिसे नहीं होती । सच कहा जाय, तो ध्वनि या आवा द् (50प्तत-लीं८८ ) रेडियो-नाटकका केवल एक उपकरण है । अत. रेडियोसे प्रसारित होनेवाले नाटककों 'ध्वनि-नाटक' कहना उचित नही जँचता । “घ्वनि-एकाकी' नाम तो रेडियो-नाटकोके ह। सबधमे श्प्रम उत्पन्न कर देता है। यह स्रम बहुत लोगोमे है। लोग समझते है कि रेडियोसे बम




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