उत्तर हिमालय - चरित | Uttar Himalaya Charit

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Uttar Himalaya Charit by प्रबोधकुमार सान्याल - Prabod Kumar Sanyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है । हिमालय के माथे की जटाएँ जिस प्रकार पुरव की आर दक्षिण असम से परे बरमा तक जा उत्तरी हैं, पश्चिम हिमालय की जटाएँ उसी प्रकार सलेमाव से आगे कार्थार मसकरान के मिलन-स्थान कराची की सागर-ततीमा तक लटक गयी हैं । मुझे ठीक-ठोक पता नहीं, शायद गान्घार-सहित सुप्राचीन 'इन्दस' या 'इच्दसस्तान' का मोटा-मोटी यहीं ढाँचा था । दक्षिण से उत्तर हिमालय की ओर जाते हुए मुन्ने मालूम था, मैं प्राचीन गाव्घार पार करके जा रहा था । जा रहा था पश्चिमोत्तर कश्मीर की तरफ 1 तक्षशिला से आगे अटक पुल पार करके प्रैण्ड ट्रक सड़क पेशावर और अफगान सुह्क गयी है । लेकिन इसी सड़क के वीच से नौशेरा होकर एक अच्छी-सी शाखा-सड़क र की ओर मरदान के मागे मालाकन्द से सीघे सैदू तक चली गयी हैं। मालाकन्द दूसरी एक चौड़ी-चिकनी सड़क जंगल और पहाड़ी इलाके के भीतर से और भी उत्तर चित्लाल राज्य पहुँची है । यहाँ हिन्दरकूश के क्रोड़-पव॑त हिन्दूराज से तीन प्रधान नदियाँ उत्तर आयी हैं । एक का नाम है 'सोआत' या श्वेत, दुसरी का 'चारखून' भबौर जौर तीसरी का 'कुनार', जो चिल्नाल से होती हुई लफगान नगरी जलालावाद में जाकर काबुल नदी से मिल गयी है । अटक के पास जा मिली है काबुल नदी और सहासिच्घुनद । चित्नाल सदा ते कश्मीर की छत्तछाया में है । साम्राज्य के बचाव के लिए अंगरेजों ने बड़े जतन से नये सिरे से उत्तर-पश्चिम सरहद की सृष्टि की थी । उपमहादेश के और किसी भी इलाके में साम्राज्य की सुरक्षा की ऐसी निर्दोष व्यवस्था नहीं है । इसके फलस्वरूप सैकड़ों मील में फंली उपत्यका नये सिरे से गठित्त होकर नैसर्गिक सौन्दयें का स्वप्त-लोक बन गयी है। ऐसी स्वास्थ्यप्रद और साफ-सुथरी उपत्यका सारे भारत में और नहीं है । दूसरी ओर, अँगरेज़ शासकों ने पड़ोसी स्वतन्त्र राष्ट्रों पर कभी एतवार नहीं किया गौर मुगलों के हाथ ते शासन की वागडोर छीन लेने के वाद से मुस्लिम राष्ट्रों से उन्हें डर और शंका बनी हुई थी । फलस्वरूप सामरिक तैयारी के लिहाज से उनके हाथ में रावलपिण्डी का नार्दनें कमाण्ड और क्वेटा का वेस्टर्न कमाण्ड खूब करीब थे । इस नाते कमाण्ड के मातहत आउट पोस्ट, फॉरवर्ड पोस्ट या फ्रण्टियर याडे की संख्या भी कम नहीं थी । ये सब हिन्दूकुश और हिन्दूराज पदंतसाला के भीतर-भीतर पहरे में नित्य तत्पर रहते । ये ऐसे सुरक्षित और आंचलिक कौशल से कायम किये गये थे कि जब भी कमी और जैसी भी भवस्था में काम आते । उत्तर-पश्चिम सीमान्त में--जसे; लेण्डीकोट्ल मालाक्द, दीर, चित्नाल या मास्तुज; रावलपिण्डी के दक्षिण या उत्तर में-जस्े; चकलाला, कोमारी या अटक, हैवेलियन, मवोटावाद आदि-आदि । सर्वत्र वही एक ही घाटी । उत्तर में चित्नाल बौर दक्षिण में वलूचिस्तान--इन दोनों के बीच एक हजार मील के भूभाग को मेंगरेज लोहे की ज॑जीर और वारूद की ढेरी से सुरक्षित रख गये हैं । उत्तरी कश्मीर को पहुरा देने का प्रधान फौजी अड्डा था गिलगित एजे्सी । हिन्दुराज 20 द्‌ हि प्पः उत्तर हिमालय चरित / १३




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