उत्तर रामचरित नाटक | Uttar Ram Charit Natak

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Uttar Ram Charit Natak by सत्यनारायण कविरत्न - Satyanarayan Kaviratn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका सिद्धा . मुश्निस्थितिन चरणों रवताडिनानि ' चाल नियम को भूलकर जब लोग किसी प्रचंड की अवज्ञा किया चाहते हैं तव उस स्वापमान की घोर यंत्रणा से व्याकुल हो कर उसे अपनों योग्यता प्रदर्शित करने के लिए के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं सूमकता । भवभूति को भी यही दशा हुई होगी; अआत्पकविस्व का उन्हें बड़ा टढ़ विश्वास था, उनका यह सुदढ़ निश्चय, निन्दकों की 'अवज्ञा व अपने ग्रन्थों की यथेष्र ख्याति न होने से थवा इस भय से कि कदाचित वे नष्ट न हो जायें, किंचित्‌ भी न हटा । अपने समय के लोगों की निन्‍्दा से हतं।त्सादद न दो उन्होंने भावी काल ही पर भरोसा रक्‍्खवा श्र “भविष्य में सत्कृति 'अझभिनन्दित होगी ” यह उन्होंने भविप्य कथन किया ( चिप० ) इसका प्रत्यक्त प्रमाण स्वरूप उन्हीं का बनाया एक श्लॉक उद्धृत किया जाता है:-- “ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्स्यव ज्ञां, जानन्तु ते किमपि तान्‌ प्रति नैंप यत्र: । उत्पत्स्यतेडस्ति मम को 5पि३« समानधर्मा, निरवधिविपुल्ा च्र पृथ्वी ।”” ( मालती-माधव नाटक ) अस्तु, इससे यहदी प्रतिपादित हुझा कि महान प्रन्थकारों के आत्म-विपयक लेख दूपणाह नहीं हैं किन्तु परमोपयोगी हैं; इन्हें आत्मश्लांघा न कद्द कर आत्मगौरव कहना अधिक उचित मालूम होता है क्योंकि के ज्ञान पर ही इसकी निर्भरता है । कर पाटास्तर--“'उत्पस्यतेम मतु को 5पि'”




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