एक व्यक्ति एक संस्था | Ek Vyakti Ek Sanstha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मत कर पसार, निज परो चल चलने की जिसको रहे झोक उसको कब कोई सका रोक ! --जपशंकर 'प्रसाद' जितने विकट संकटों मे है, जिनका जीवन-सुमन खिला ! गौरव-गन्ध उन्हें उत्तना ही अन्र, तत्र, सर्वन्न मिला ! -मेंथिलीशरण गुप्त




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