तत्वा दर्शिनी | Tatva Darshini

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Tatva Darshini by स्वतंत्रानन्द जी महाराज - SwatantraaNand JI Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ टीकाकार का संचिप्त परिचय ॥। श्री मद्भगवद्वीता की 'लरवर्दादिनी नामक टीका के टीकाकार पूज्यपाद थी भी १००५८ शो. स्वामी स्त्रतस्नान्द शी मदाराघ का घन्म गोरखपुर जिज्ञान्तगंत चॉँठिगाँव तइलील के 'गजदड़ा” मम में कौशिक वंशावतंस ग्रैलोक्य प्रसिद्ध महर्षि विश्वामित्र के पावन-कुल में भाद्रयद कष्णाएमी सम्बत्‌ १६७५. बि० को हुश्रा । इनके पिता का नाम “शी सूसनशाही” उपनाम थी ददरि मंगलशाही” श्रीर माता का नाम “शीमती फूलमती देवी” है । इनके माता-पिता बड़े रचरित्र, सरल एवं श्ास्तिक दे । ये श्रपने पाँच भाइयों में खबरे शेछ्ठ दें । इनका पूवे नरम “शी सुखारी शाही” उपनाम “थी सीताराम शाही' दै। इनकी सौ माग्यवती घममंपर्क्षी “श्रीमती योगमायादेवी” बढ़ी पतिय्रता, सती-साध्वी ख्री-रत हैं । इनकी दो सम्तानेंक् एफ पुत्री एवं एफ पुत्र हें । थी स्रामीकी बचपन से ही बड़े कार्यकृशल, निर्मीक, चमाथील, निर्ञॉमी, सस्यपवादी या परोपकारी-दू्ति के रदे दें । जिस भी कार्य में इन्होंने हाय लगाया उचे बड़ी सच्चाई, दचता एवं उत्साह से पूरा किया । ये श्पने नियम के बड़े पकड़े रदे हैं । विशुद्ध-श्राचरण-युक्ते रदने के कारण निकट- सम्प्र में रददनेवालों ने प्रमाबित दोफर इनकी भूरिन्थूरि प्रशंसा की दै। सन्‌ १६.४० ईं० में श्री स्वामीक्षी बत्ती जिले की खलीलाबाद तइसील में वमीरमेंज' सामक स्थान पर एक मंदिर में रहते थे । यहीं से इनमें भगवद- वाहना का शीगणेश हुश्ा । मंदिर में मयदान्‌ का दर्शन करने श्वोर अद्धा- भक्तिपूबक मगवर्तू-प्रसाद प्रदश फरने में इन्हें विशेष श्रीनन्द मिलने लगा | दीपावली का दिन या । लोग श्रपनी घुन में सस्त ये -धीस स्वर शी स्वामीभी के सस्तिष्क में ठइया यइ प्रभ उठा कि “इठ विशेष श्रवंसर पर सुर कया करना चादिये है प््या बलवान बनना चाहिये १ उचर मिला--नहीं 1? 'तो फिर कया लोक-ख्पाति तथा स्री-पुत्नादि से युक्त दोना चाहिये १” “चर मिला--नददीं । क्योंकि ये रुभी विनाशशील एवं चणुमंगुर हैं। बवः उपेचूणीय ईं। श्रन्त में घुद्धि इस निष्कर्ष पर पहुँची कि मगवद्भजन ही सार है । यहीं मानवन्बीवन का झर्तिम-लदय है !




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