नयी तालीम | Naye Talim

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सैज्ञानिक लोग तो अब घास से भो दूध लेने का सोचने लग गये है। जमोन आदमी वे. लिये इतना वन पड़ने बाली है कि तर सावद गाय को भी दर की ही तरह जगल में रटना पडे। या वह भी सभव हूं कि यदि हमे दूध के लिये व रखती हो पड़े तो फिर गो-प्रदेध नाद से एक अलग प्रदेश हो उसके लिए रखना होगा सभी उसे हम चारा दे सकेंगे। मडने का तात्पर्य यद हूँ कि गाय के सुधार और सुरक्षा के लिए दर तरह के प्रयास विये जानें चाटिये! उसमें लिये यह सवाल व्यर्थ हे कि हम शिदेशा साडो से उसकी नस्ल सुधार का काम ले या नहीं। जहाँ तक वावा का सवाल हूँ वादा तो जय जगत वाला है और मैं इसमें कोई भी वुराई नहीं देखता। गाय से खेतों का काम लेने वा भी कभो कभी सवाल किया जाता हे और उस पर तोब्र मतभेद दिखाई देता है। मेरे विचार में यह सावल भी विवाद का नहीं हूँ 1 गाय से खेतों का बाम लिया जा सकता हूँ पर झतें यद है कि उसे खिलाया भी अच्छी तरह जाय । हमारी आध्यारिमिक कसौटी : गाप तो हमारी आध्याहियक गसीटी भी लेती हू। उसके हम पर इतने उपकार हूँ कि हम उतसे उछ्ण हो ही नहीं सकते।. इसलिये भी यह हमारे मानवपत की परीक्षा है कि हम उसके उपकारो का वदला कया उसकी हत्या बरके देंगे ? यो भी आध्याहिमकता प्राणीमात्र की हिसा का विरोध करती है । इसलिये वावा गो-हत्या का पूर्ण विरोधी हैं और यह तत्काल बंद होती चाहिये। सह भारत के लिये तो और भो आवद्यक हूँ जहाँ पर बत वा इतना महत्व हूँ खेती के बारण। एकगस्त छिग हू




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