ओझा परेश पात्र की ओझाई | Ojha Paresh Patar Ki Ojhaei

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Ojha Paresh Patar Ki Ojhaei by प्रतापचन्द्र- Pratapchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वअध्याय ; 17 | 15 रात के दो बजे के वक़्त बीमार संमला । और सवेरा होते-न-होते बूढ़े खाँ साहब का बुखार चला गया । वस, मुनीरुद्दीन ने खुश होकर सिर्फ दक्षिणा ही नही दी, वह बकरी का बच्चा भी दिया । हू ले, बेटी, तू ही उसे पाल ।' ग्जरूर पालूंगी । कदम बकरी के बच्चे को लेकर दुलारने लगी 1 परे बोला, “तो सुन, मुनीरुद्दीन साहब ने रिदय के खोका को बुलवाया । अब्वाजात खोका डाक्टर के इलाज मे थे । तमाम गोलियाँ खिलायी, पैसों का सराघ हुआ। लेकिन रोग कम न हुआ। मुनीरुद्दीन नें खोका डाक्टर को जवाब दे दिया । अन्त में अगति की गति, इसी परेद पात्र की पुकार हुई। वस, एक मन्तर से ही काम फतह 1 परेद्या ने ही इस क्षेत्र में 'लोका डाक्टर' नाम चालू किया था । डाक्टर का असली नाम था साधन भद्र । श्याम सुन्दर पुत्र हृदय दास का लड़का, दाह से पास कर पूरा डाक्टर बनकर आया था। साधन की बहुत दिनों की साध डाबटर बनने की थी । लड़का भी अच्छा था । टपाटप पास कर गया स्कूल की परीक्षाएँ : अन्तिम परीक्षा में ज़िलेकी छात्र-दुत्ति भी मिली । उसके बाद बाहर पढने गया; डाक्टरी पढने लगा । पास करके निकला । सब लोगों ने सोचा कि साधन अब दाहर में रहेगा । लेकिन उसने ऐसा न किया । गाँव लौट आया, एक कमरे में दफ्तर बनाया । पहले साइ- किस खरीदी, उसके बाद छोटी-सी मोटर-साइकिल । देखते-देखते उसका काम जम गया । लेकिन परेश पात्र का काम कम होने लगा । गाँव में अगर पास किया हुआ डाक्टर मिले तो वीमारी दूर करने के लिए कौन ओोभा को चुलायेगा ? बहुत लाचार होने पर डावटर जवाब दे दे, तभी न ओभा की तलाश होती है ! इसीलिए स्वभावत: शुरू से ही परेध ने साधन को अपना प्रतिद्वन्द्ी समक लिया । साधन को हेठा करने के लिए बह हाथ धोकर पीछे पड़ गया । साधन की किसी भी विफलता को वह चिल्ला-चिल्लाकर सब को बताता । साधन को “खोका डाक्टर नाम देकर उसने मज़ाक उड़ाना' शाहा । लोगों मे एक-दूसरे से सुनकर “खोका डाक्टर” नाम चालू हो गया । साधन के कान में वात पड़ी तो दह जरा मी खफा न हुआ । उलटे विनय सहित बोला : परेश्न काका के भागे तो में सोका ही हूँ। उनकी र्तिनी जानकारी है ! मैं 'तो संचंमुच कल का बच्चा हूँ ।' ः




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