युद्धोपरान्त युद्धबन्दियों के साथ | Yuddhoparant Yuddhabandiyon Ke Sath

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Yuddhoparant Yuddhabandiyon Ke Sath  by वीर सिंह - Veer Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हए) युद्ध के नियम और प्रथाओं का पालन करते हुए संघर्ष में सक्रिय हों, 3. स्थायी मधस्त्र सेनाओं के वे सदस्य जो धतिवन्धक शब्ति द्वारा अमान्य किसी सरकार भथवा प्रभुत्व के प्रति राजभवित स्वीकारते हों, मे 4. वे सब व्यक्ति जो सदास्त्र सेनाओ के सदस्य न होते हुए भी उनके साथ रहते हों जैसे सैनिक वायुयान के चालक समूह के असैनिक सदस्य, युद्ध संवाददाता, आपूर्ति ठेकेदार, सदास्त्र सेनाओं की सेवा में रत श्रमिक अथवा ऐसे व्यक्ति सशस्त्र सेनाओ का कहयाण जिनके उत्तरदायित्व में हो वशर्ते कि वे सशस्त्र सेना की सहमति से उसके साथ हैं जो उन्हे अधिकार पत्र भी देती है, 5. वायुयान चालक समूहे के सदस्य, पायलेट और व्यापारी जहाज के प्रशिक्षार्थी, मसैनिक वायृयान के चालक समूह के सदस्य जी संघपरंत किसी एक पक्ष से सबद्ध हों और जिन्हे किसी अन्तर्सष्ट्रीय कानून के तहत अधिक सुविधाएं उपलब्ध न हों, 6. उस क्षेत्र के निवासी जिस पर दात्रु का अधिकार न हो, जो शत्रु के पहुंचने पर आंक्रमणकारी सेना को रोकने के लिए स्वेच्छा से शस्त्र उठा लेते है, जिन्हें स्वयं को स्थायी सेना के रूप में संगठित कर पाने को समय ही न मिला हो, वशर्तें कि वे अपने साथ खले आाम शस्त्र रखते हो तथा युद्ध के नियम और प्रथाओं का आदर “* करते हों ।” संघपे में वेन्दी बनाए जाने या भात्म समपं ण करने के समय से प्रत्या- वतित हो स्वदेदा लोटने के समय तक युद्धवा'दियों पर जेनेवा अभिसमय लायूं हॉति हूँ । जहां इन अभिसमयों का अक्षरदय: पालन कंर इनके तहत युद्ध वन्दिंयों के प्र्ति ब्पवहीर करना अभिरक्षक अथवा प्रतिवधक देश का नैतिक कततेव्य हैं वही मुंद्रदेन्दियों को भी सैनिको चित अनुदासन में रहकर इस अभिसमय के अनुच्छेदों का पालन करेना होती है। प्रतिबंधक देश से अपेक्षो की जाती हैं कि वह युद्धवाग्दयों कीं अनिवार्य आवश्यकताओं की पूति कर उनकी जीवन रक्षा करें और अपने यहां प्रचलित कानून के विरुद्ध उन्हेंसजा नदं। * 1 युद्धबन्दी और जेनेवां अभिसमंय '/ 17




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