जीवन की आध्यात्मिक दृष्टि | Jeevan Ki Adhyatmik Drishti

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Jeevan Ki Adhyatmik Drishti by डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Dr. Sarvpalli Radhakrishnan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धर्म को भ्राघुनिक मुग की चुनौती श्श सही निधारित क्यि लात हैं । दन सम्याश्ा से परियतन वरना ही इन नत््वा वी परिवतन श्रौर स्पा तरण व लिए उदाहरण के तौर पर उनवी रेटियमघमिता का बदलने के लिए, पयाप्त है । कमी-वर्म' यह वहा जाता है मि भौतिक पदाथ वी नयी श्रवधारणा न पुराने मौतिकवाद का बदल दिया है । इसका यदि यह झ्रय है फि पुराना परमाणु सिद्धात अब नहीं टिक सरता ता वह सही है। विस्तु यदि इसया श्रथ यह हा कि एस नयी श्रववारणा स श्रामा औऔर प्रउति का भद कम हो गया है तो वह विश्कूत गलत है। यदि यास्तिक सिद्धान्त श्रय हप्लिया स ठात्र झ्रावार पर टिका हुमा है ता परमाणु का वद्यतिक उजा मे विस्लपण उस छू भी नहीं सकता 1 आधुनिक ज्यातिवित्तान न टाजमी की कयना के उस द्वात्त प्ररान श्रौर श्रारामदह जन्याप्ट या, जिसका श्तीत जीवन कुत छ हजार बप वा था, सिथ्या सिद्ध बर दिया है । झात हम यह वितवास नहीं बर सकते कि ८४००८ इ० पूव एवं मंगलवार का इसवरीय स्रादगा स सहसा ही यह त्रह्माण्ट वन गया । ज्यानिविदात न देगा (स्पम) का विस्तार कर उसे श्रमाम वना दिया है जहा टूरिया प्रवाता वर्षों म नापी जाती ह श्रौर प्रृथ्वी का परह्माण्ड के वद्ध के उच्च पद स वदखले करे एक छोटनस सौर परिवार म, जा स्वय शीत तारवीय तन मे झनत टूरी तक फैते अन्य असस्य परिवारा स घिरा टुम्ा है एक सुद ग्रह का स्थान द दिया है । अह्मार उमस कहा बड़ा है जितनी कि हमन पहेंत कभी कल्पना वी था । हमारों पृथ्वी निस महानु सूथ वी परिचारिजा है वह हमार तारामण्टत क॑ श्ररवा तारा मे एके शिका-मात्र है तौर यह महान तारामण्त भी स्वय विस्तीण दा से फत नाखां तारामण्लता मे स एक है फिर भी श्राइचय वी वात यह है कि दस दा (स्पस) वा भी दा ते होना श्रसम्मव नहीं है श्रौर यह हा सबता है कि प्रकादा की एवं बिरण रसक चारा धार परितमा कर अत से फिर अपन प्रारम्भ स्वत पर लौह आएं 15 इस सयवी एक विदुद् यास्लिक व्याख्या की जाती है। प्रहति की एवता बिचान या समस्त सना क एक एस एककीय (युनिररी) आधार का श्ार सर्कर्त बरती है, जिसके साथ प्रयर वस्तु का श्रतत पूरी खाज के वाद सम्बथ जाट जा सकता हैं। बिन्तु दस एकक य सत्ता को वुद्धियुवत मानना श्रनिवाय नहा है । जीवनरहित भीलिव कण अससख्य वर्षों तर तोज्गति करत रह श्रौर उहान झपनी #. नाम दियुनिवे यरारणड बस (है €न्डो 1




User Reviews

  • Nilesh

    at 2020-04-06 03:33:47
    Rated : 7 out of 10 stars.
    "स्कैन की समस्या"
    पुस्तक भारतीय दर्शन के लिए बहुत जरूरी है लेकिन पुस्तक की पीडीएफ सही ढंग से स्कैन नही की गई है जिससे पढ़ने में कठिनाई आ रही है यदि इस समस्या का समाधान किया जा सके तो बहुत ही उत्तम रहेगा।
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