स्त्रीसुबोधिनी भाग - 2 | Stri Subodhini Bhag -2

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Stri Subodhini Bhag -2 by सन्नूलाल गुप्त -Sannulal Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समप्पण 0, पी. ४५ देशहितेषी मह।दायो ! कक आपकी करवृत तो बहुत कुछ है उसका एस एस उपकार मानना और यथो चित धन्यवाद देना मेरी जिह्ा और लेखनीका काम नहीं उनकी सामध्य से बाहर हे- केवल मनमात्रकाही अनुभव होसक़ा हैं तथापि में कुछ यथा वुद्धि बल और सामध्य पूवक सुदामा के तरडुछ अप्ण काताईूं स्वीकार कीजियेगा-- आपके मदत्काय में सहायता तो यह श्ुदवद्धि कया देसक्ला इंपर तोभी जस गशिलहरी १ तिनका लेकर रामचद्जी के पाम सेतु बांधते समय गई थी और मचन्दजीने उसको उसकी सामध्य समझकर प्रसन्नता से अगीकृत किया था उसी आशासे यह 'स्रीसबोपिनी, पके चरण कमल में निरवेदित है ग्रहण करिके कताथ कीजियेंगा-- २२ जन ) आपका दासानदास १८ ह न्थकती धावडह बा भू कु गुलककथरण




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