गगनान्चल | Gagnanchal V 3-4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेव तोलस्तोय : विश्व के महान्‌ साहित्यकार और चिन्तक विचारों से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी एक देवता की तरह पूजा करने लगे और धार्मिक क्रॉस के स्थान पर उन्हीं के चित्र को अपने गले में लटकाने लगे । कज़ान से लौटने के बाद वे अपनी जायदाद यारनाया में रहने लगे । यहाँ उन्होंने रूसो के सिद्धान्तों का उपयोग किसानों की दशा सुधारने में किया । वे अपने कार्य में सफल न हो सके क्योंकि सदियों से उत्पीड़ित रूसी किसानों के लिए यह विश्वास करना कि कोई जमींदार सच्चे हृदय से उनके हित की बात सोच सकता है, संभव न था । इसलिए वे अपने इस यवा जमींदार को भी संदेह की दृष्टि से देखते थे । अपने इन अनभवों से तोलस्तोय को सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि वे रूस के किसानों की आधिक दुदंशा और उनके शोषण के विषय में जान सके । यही नहीं उन्हें किसानों की भावनाओं और उनके चरित्र की महानता समझने का भी समचित अवसर प्राप्त हुआ । इसलिए आगे चलकर वे अपने क्लीन वर्ग से दूर हटत हुए, पूजीवादी शासन से उत्पीडित रुस के पित-सत्तात्मक किसान वर्ग के लाखों-लाख जन-समूह के विचारों और भावनाओं को अपनी कलात्मक कृतियों में व्यवत करने में सफल हुए । वर्गों की विषमता को न समझते हुए भी उन्होंने किसानों को कंगाल बनानेवाले और उन्हें आधिक दासता में जकड़नेवाले जार के निरंकश शासन के विरुद्ध अपनी आवाज़ बलन्द की । ं तोलस्तोय ने अपन। साहित्यिक जीवन “बीते हुए कल की कहानी' नामक रचना से जिसे उन्होंने १ -. : ग॑ लिखा, प्रारम्भ किया । यह कृति अधूरे और अपरप्कृत पाण्डलेख के रूप में उग: . : । इस कहानी में वे “जीवन के एक दिन के आंतरिक पक्ष' का चित्रण करन: विचारों और उनके ०. - हैं, अध्ययन कर गय : जाती जिसे जेम्स ज! :'- के रूप में लिखा । १८४१ वर. रूसी सेना में स्वयः वहीं सेना में एक ऊ- प्राकृतिक सौंदय क 2: हु * य्रद् के हा घर तन नर रे: दी ः अर व: घट, सर: रदेप्रपम कक हज बम प् पा हे कि | ते कौ दर 4. पर .. थे जिससे कि वे अपनों उन इच्छाओं और अस्पष्ट गयपं का, जो कि प्रतिदिन के अनुभवों द्वारा उत्पन्न होते : इस कृति को पूरा कर लेते तो हमें वह रचना मिल ..दत वर्षों बाद चेतना प्रवाहात्मक शैली में 'यूलिसिस गने में तोलस्तोय काफकाज़ (काकेशस) चले गए और . रूप में काम करने लगे । उनके बड़े भाई निकोलस “ नियक्‍त थे। काफकाज़ के लभावने पव॑तीय दृश्यों ने # अन्तर्जात उत्साह को उद्दीप्त कर दिया और उनके क्षित होनेवाली मनष्य की निमंमता के प्रति रोष और न अनभवों को उन्होंने 'आक्रमण' और 'जंगल की चिब्नित किया । १८४५२ में लिखी 'आक्रमण' कहानी में के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई : “ऐसे स्थान पर भी वे दा भावना तथा अपने साथियों को नष्ट करने को लालसा




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