हुजूर | Hujoor
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हुजूर तेरद
साहब ने भी दुनिया बसाई थी कि बिस्तर के पास जसे होलडॉल
रखा था । जानें किन दिन गोल करना पड़ जायें। साहब के पास
कोकपपियर सी था, हिहुस्तान भी था । बकौल कालाँयल के साहब
जानता था कि अपने पास हिंडुस्तान हमेशा नहीं रहेगा, शेक्सपियर
अपने पास बचा रह जायेगा । उसने अपनी संस्कृति को स्कूलों के
ज़रिये हिंदुस्तान पर लादा था, वह परम ब्राह्मण की भांति अपनी रक्त-
बुद्धिकी मर्यादा को लिये सबसे ऊपर खुदा बनकर सब को हिक़ारत
को समज्र से देखता हुआ गिद्ध कीं तरह चट्टान की चोदी पर
बैठा था ।
बड़ा दिन आ 'गया था । गिरजों में कानों को लुभानेवाले घंटे
बजनें लगे थे । उसकी दिगंतब्यापिनी मधुर ध्वनि अंप्रे़ी राज का लोक
कल्याणकारी स्वप्न दिखाती थी । जब वहू ध्वनि ऊंची सुली के पास
से रस्सी पकड़ कर नीचे आती थी तो वहाँ एक भव्य, लंबी सफ़ेद
दाढ़ीवाला पादरी दिखाई देता था, जिसकी आँखों में करुणा दिखाई
देती थी । पर वह केवल करुणा नहीं थो । बहू एक उस लुटेरे का
स्वरूप था, जो हत्या करके फिर लाश को दफना कर उस पर अपनी
सभ्यता का चिह्न सलीब गाड़नेवाला था । उसको फ़ना करने की
जिंदादिली थी ।
ईसामसीह का जन्मदिन था--उस आदमी का, जिसने मरते
वक्त थी पापियों के लिये क्षमा साँगी थी; वह, जो सुलामों के साथ था,
ऊँचे लोहे के कन्टोंप लगानंवाले रोमन शाहृुंधाहों के साथ न था ।
जिसकी आँखों में से गुलामों ने आज्ञादी का मसूर ऐसे लिया था जसे
वह आधेहयात था । वहू ईसामसीह आज सत्तनत बर्तानिया का सफ़ेद
कफ़न बन गया था, जिसे पादरियों ने हिंदुस्तानियों की जिंदा लाद
पर उड़ा दिया था ।
७
हम बहुत खुश बेठे थे । कमरे में सजी हुई मेमसाहिबा थी ।
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