राजनीति - शास्त्र | Rajaneeti - Shastra

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Rajaneeti - Shastra by नरोत्तम भार्गव - Narottam Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विधि सांवेघानिक विधि ((0०७४घंकप्र्न॑०७४७! 159), जिस विधि द्वारा राज्य स्वय नियन्रित हाता है और जिस विधि द्वारा राज्य जनता पर शासन करता है इन दोनों में प्राय भेद किया जाता है। पहले प्रकारकी विधिक सावैधानिक विधि और दूसरे प्रकार की विधिकों साधारण विधि कहते है। सावधानिक विधि अशत लिखित और अथत अलिखित हांती है। साधारण विधि ता विधि निर्माण की नियमित पद्धति द्वारा बनायी जाती है किलतु सावैधानिक विधि विधान मण्डलकी इच्छाके भी ऊपर अन्तिम सम्प्रभुकी इच्छासे बतती है। मैकाइवर कहते हैं कि सावैधानिक विधि सरका रके विभिन्न विभागोकु क्तंव्याका निश्चित करती है और नासकों और दासितोंके बीच सम्बन्ध निर्धारित करती है। इसका उदय समाजकी एकताके उत्तर में होता है जो निश्चित और स्पप्ट रूपये यह दियर करता है कि राज्यकों क्या करना चाहिए और उसका संगठन _कसे होना वाहिए। सावधानिक विधि, यह भी तय कर देती है कि कानूनकी नजरोमे “सरकार (छु०ए८० परत) और जलता बराबर है। सरकारकों कोई कानूनी रियायत या विनेपाधिकार नहीं मिलते । न. साधारण विधि (0#सावडह४ 8) मैकाइवर ने ठीक कहा है कि राज्य विधिसे बनता भी है और उसको बनाताभी है (५५ २७२) । जनकके रूपसे राज्य अपने विसान सण्डलो दारा विधि बनाता है। ये विधिया नागरिकोंके पारस्परिक सम्बन्धी और राज्यैके साथ नागरिकोके सम्चन्धोका नियमन करती है, और इन्हें सावारण विधि या लिखिन विधि (8६2६० स्टैट्यूट ) कहते है। अदालते उन्हें स्वीकार सदर मार हन्हें भग करने वालोकों दण्ड देतों हैं। ही विजनिक विधि और वेयक्तिक विधि (0७1५८ 18४ छशर्स कूइपाएछ६९ हल) साधारण विधिको साव जनिक और वैयवितक दो वर्गोमें बाँटनेका श्रेय श्री हॉलेण्ड को है। उनके अनुसार सार्वजनिक विधिका सम्बन्ध राज्यके संगठन, सरकारी कार्योंकि परिसीमन (छा:08घ0०० 0 छु०ए८घएए6०६2] धिशत1008) और राज्य तथा व्यक्तिके सम्बन्धोसे है। इसके विपरीत व्यक्तिगत विधि व्यक्तियोके पारस्परिक सम्बन्धोका नियमन करनी है। यह व्यक्तियोंकि अधिकारी और उत्तरदायित्वोको निश्चित करती है और उनका नियमन (१८४णा६८०0) करतो है। स्वय हॉलेग्ड के दाब्दोमें बैयक्तिक विधिम सम्बन्धित उभय-पक्ष अर्थात्‌ दोनों पक्ष नागरिक होते है, राज्य जिनके ऊपर और जिगक॑ बीच एक निष्पक्ष पंचके रूपमे विद्यमान रहता है। यद्यपि सार्वजनिक विधिमे भी राज्य एक निष्पक्ष पचके रूपमे स्थित रहता है तथापि वह सम्बन्धित पक्षोम से एक पक्ष स्वय होता है। राष्ट्रीय विधि (छपघाटाकु&। 127). सावंजनिक और वैयविंतक विधि दोनो मिलकर राष्ट्रीय विवि कहलाती है। यह राज्यकी सी माकें अन्दर सभी व्यक्तियों भौर सघों पर लागू हाती है और राज्यको झर्वोच्च सत्ता द्वारा लागू की जाती है । अन्तर्राष्ट्रीय , विधि (0६३'७४३०७४। ई8#) इसका चिवेचन हहूयायके अन्तमे किया गया है।




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