व्यवहार - शुद्धि | Vyavhar - Shuddhi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
63 MB
कुल पष्ठ :
951
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री कृष्णदास जाजू - Shri Krishnadas Jaju
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शक व्यवहददार-दु दि
” ऊपर की प्रतिज्ञाओं का विचार करने पर माठम होगा कि
दोनों संस्थाओं की प्रतिज्ञाओं में उस समय चलनेवाले अझुद्ध व्यव-
हार को रोकने का विशेष यत्न है। यहाँ इतनी तफसीछ देने का
यह भी एक कारण है कि अब भी, और भविप्य में भी, छम्बे
अरसे तक, ऐसे आन्दोटनों का महत्त्व कम नहीं होगा । जो यह
काम करना चाहें, उनको इस तफसीछ से कुछ मदद छौर मागे-द्शन
मिलेगा और ऐसा काम करने की प्रेरणा भी मिलेगी, ऐसी भाशा है ।+
बस्त्ई-मण्डल और वर्धा-समिति का काये
बस्बइ-मण्डढ के सदस्य करीब १०० तक बने और सहायक
सदस्य उससे आधे । वर्धा-समिति के करीब १०० सदस्य बने ।
वर्धा में एक सुविधा यह रददी कि यहाँ के कंट्रोल उतने कड़े नहीं थे
तथा कुछ रचनात्मक संस्थाओं के कार्येकतों भी सदस्य बने, जिन्हें
प्रतिज्ञा निभाने में विशेष कठिनाई नहीं थी । बम्बई का काम कठिन
था। वहाँ कंट्रोल के नियम बहुत कड़े थे और व्यापारी-वर्ग से भी
संबंध आया । बम्बई-मण्डढ का काम अब भी चल तो रहा है, पर .
उसमें पहले जैसी गति नहीं रददी । सन् १९५१ में बस्बई-मण्डछ मे
'बहाँ एक व्यवहार-शुद्धि सप्ताइ मनाया, जिसमें बम्बई के सिन्न-'
सिन्न क्षेत्रों में तथा मिन्न-भिन्न स्तरों के लोगों में प्रचार किया गया ।
वर्घों में दो वर्षो में ( ५२-५३ में ) अधिक काम नहीं हो पाया ।
अधिकतर कार्येकर्ता भूदान-यज्ञ के काम में ढगे रहे । निकट भविष्य में
शुद्ध-व्यवद्दार समिति के काम के छिए विशेष प्रयास होने की परि-
स्थिति न देखकर उस समिति का विसजन कर दिया गया । बम्बई
और वर्धा के अछावा बाहर भी ऐसा संगठन करने का कुछ थोढ़ा-सा
प्रयज् जरूर हुआ, परन्तु वदद उल्देख योग्य नहीं दे । बाइर के कुछ
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