आधुनिक कवि १ | Aadhunik Kavi -1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
147
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इस वस्ठुवादप्रधान युग में भी वदद श्रनाइत नही हुमा चाहे इसका कास्ण
मनुष्य की रह्मम्योन्पुख प्रदूत्ति हो और चाहे उसकी लौकिक रूपकों में
सुन्दरतम अभिव्यक्ति |
इस बुद्धिबाद के युग मे सनुष्य भावपक्ष की सद्दायता से, शपने जीवन
-को कसने के लिए कोमल कसोटियाँ क्यों प्रस्तुत करे, भावना की साकारता
के लिए. अध्यात्म की पीठिका गयो खोजता फिरे श्रौर फिर परोक्ष अध्यात्म
को प्रत्यक्ष जगत में क्यों प्रतिष्ठित करे यह सभी प्रश्न सामयिक हैं । पर
इनका उत्तर केवल बुद्धि से दिया जा सकेगा ऐसा सम्भव नहीं जान पड़ता,
क्योंकि बुद्धि का प्रत्येक सगहधान श्पने साथ प्रश्नों की एक बड़ी संख्या
उत्पन्न कर लेता है |
साघारणुतः ग्रन्य व्यक्तियों के समान दी कवि की स्थिति मी प्रत्यक्त
जगत की व्यष्टि आर समष्टि दोनो ही में है । एक में वह झ्रपनी इकाई में
पूण है श्र दूसरी में वह अपनी इकाई से बाह्य जगत की इकाई को पूरा
करता है । उसके श्रन्तजंगत का विकास ऐसा होना शझ्ावश्यक है जो उसके
व्यष्टिगत जीवन का विकास और परिष्कार करता इुश्रा समब्टिंगत
जीवन के साथ उसका सामझस्य स्थापित कर दे । मनुष्य के पास इसके:
लिए, केवल दो ही उपाय हैं, बुद्धि का विकास श्र भावना का परिष्कार ।
परन्तु केवल बौद्धिक निरूपण जीवन के मूल तत्वों की व्याख्या कर
सकता है, उनका परिष्कार नददीं जो जीवन के सर्वतोन्मुखी विकास के
लिए अपेक्षित है श्र केवल भावना जीवन को गति दे सकती है:
दिशा नदी ।
भावातिरेक को हम अपनी क्रियाशीलता का एक विशिष्ट रूपान्तर
मान सकते हैं जो एक ही क्षण में इमारे सम्पूर्ण ग्रन्तर्जगत को स्पश कर
बाह्य जगत में अपनी अभिव्यक्ति के लिए श्रस्थिर हो उठता है; पर बद्धि
के दिशानिदेंश के अभाव में इस भावप्रवेग के लिए. अपनी व्यापकत!
की सीमाये खोज लेना कठिन हो जाता है अतः दोनो का उचित मात्रा में
सन्दुलन दी श्रपेद्धित रहेगा |
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