आधुनिक भारतीय शासन | Aadhunik Bharatiy Shasan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झ भूमिका बालों की राजनीतिक जानकारी के लिए यद्द किताब सब तरह से मदद देगी । इसमें लेखक ने हिन्दोस्तानी इतिहास श्र राजनीति दोनों का इतनी ,खूबी के साथ बयान किया है कि शासन-पद्धति ऐसा कठिन मजमून हर पहलू से सहल श्र साफ़ हो गया है । राजनीतिक संस्था्मों की बारीकियों श्रौर उनकी कमज़ोरियों का धतना अच्छा वर्णन किया गया है कि पढ़ने वाले लेखक की मिहनत की तारीफ्र किये वसेर नददीं रह सकते । होम गवर्नेमेंट, हिन्दोस्तान की सरकार और सूबों की सरकारों के काम करने के तरीके और इनके आपस के सम्बन्ध के बयान करने में लेखक को जा कामयाबी हासिल हुई है वह उसके बखूबी पढ़मे शरीर समकने का नतीजा है। १९३४ के संघ शासन (फ़ेडरेशन) विधान की जाँच-पड़ताल में किसी भी तरह की तरफ़दारी श्र खींचातानी नहीं की गई हैं । लोगों का खयाल है कि श्राजकल की 'न्तरराष्ट्रीय उलभनों की वजह से मीजूदा शासन-विधान की कोई भ्रह्मियत नहीं है । केन्द्र वऔर सात सूधों में शासन-विधान के स्थगित हो जाने से उनका ऐसा सेाचना बहुत कुछ ठीक हो सकता है, लेकिन आये दिन हमें इस पर विचार तो करना ही होगा । हुकूमत के मामले में कितनी दी तब्दीलियाँ क्यों नह्दो जाये, उसकी तवारीखी जानकारी के लिये तमाम पिछले तरीकों का जानना निहायत ज़रूरी है। ऐसी हालत में मौजूदा संघ- शासन की गहरी जानकारी हर हिन्दोस्तानी के लिये उसके राजनीतिक जीवन के बास्ते बहुत ही ज़रूरी है । श्रागे चल कर हुकूमत के जा तरीक़े काम में लाये जायेंगे उनकी बुनियाद बहुत कुछ इसी पर रक्‍्खी जायगी । विद्यार्थियों श्ञौर दूसरे लोगों के लिये इसीलिये यह ज़रूरी है कि वे इसकी जानकारी पूरी तरह हासिल करें, ताकि मौका आने पर वे मुल्क की तरक्की में कन्घा टेक सकें । स्थानिक शासन (1.00 8८ -छु0एटागाएा ला) ब्मौर गाँव की पंचायतों के महत्व को लेखक ने पूरी तरह समभा है । पंचायत पर एक अलग घयान लिखकर इसके फ़ायदे पर अच्छी रोशनी डाली गई है । हिन्दोस्तानी हुकूमत के सभी पहलुओं पर नज़र डालते हुये ऐसा कोई सवाल नहीं उठता जिसका जवाब किताब के अन्दर मौजूद न हो । अगर कुछ पेचीदे सवाल पूरी तौर से बयान नहीं किये गये हैं तो इसकी वजह सिफ़ यही है कि हुकूमत का मजमून अपने दायरे से बाहर न जाने पाये । कोई भी लखक बड़ी-से-बढ़ी किताब के




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