रोगों की अचूक चिकित्सा | Rogon Ki Achuk Chikitsa

Rogon Ki Achuk Chikitsa by श्री जानकी शरण वर्मा - Shree Janki Sharan Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीसरे श्रोर चोथे संस्करण के विषय में «तीसरे संस्करण में मंने कोई ख़ास तब्दीली नहीं की, पर इस चोथ संस्करण में बहुत बातें बढ़ाई और कछ बातें बदली गई हू । इस वृद्धि और परिवतंन के लिए बहुत सी बातें अपने अनुभव और पुस्तकों के अध्ययन से मिलों और कुछ बातें इलाहाबाद के नेचरो-हामियी डाक्टर ब्रजबिहरी दोक्षित और गुरुहुल कांगड़ी के नंचरोपथी ( प्राकृतिक चिकित्सा-शास्त्र ) के अब्यापक श्रो भव,नोप्रसाद जी के परामद से मिलों । इन सज्जनों को धन्यवाद । इस संस्करण को भो बिव्कूल नई पुस्तक को तरह पढ़िए । चौथे संस्करण के प्रकाशित होने के पहल मेने नोची लिखी पुस्तक पढ़ों:- (१) किलितपिलान्निाएपएए पीकर (पाए (पा, रो. (015, (दर). नर (व [ए00. (३). १५०छुछ-नव्णाएिा उप 10 0त |) 8. (४). 1पटाधकानावतिए 20 वे एप सिटएपू, इन लंखकों को घन्यव।द । यहू पुस्तक बहुत बड़ी हो सकती थी, पर मेंने तो इसे पारिवारिक प्रयोग के दृष्टिकोण से हो लिखा है । केम्प दिटि | क | क ”शखक एप्रिल, १६४४




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