किरणों की खोज में | Kirano Ki Khoj Me

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अत्यन्त सुखद प्रतीत होता है । स्नान से पाप घुल जाते हैं; पाप तो दीखते नहीं, अतः उनके दृश्य प्रतीक के रूप में जिन वल्त्रों से स्नान किया जाता है उन्हें कुंड पर ही छोड़ देने की प्रथा है। इस सरठ उपाय से यात्री अपने पाप यहीं छोड़ कर चले झा सकते हैं। यायावर जब गया तब तो कुंड पर सन्नाटा था, पर संक्रान्ति आदि के स्नानों पर जत्र भीड़ लगती है, तत्र मुमुल्ुओं से अधिक उत्साह उन के पाप-मोचन के लिए, वहाँ जुटे हुए मिद्मी ख्री-पुरुष दिखाते हैं । मुमक्षु नहा कर निकले-न-निकले कि सुक्तिपपथ के ये सहायक उस को धघोती-गमछा-लँगोट जो कुछ हो खींच लेते हैं, और कभी-कभी मुमुश्ु को उस परम निष्पाप अवस्था में ही अपने सूखे कपड़ों तक जाना पड़ता है । इस का विरोध सम्मव नहीं है, यही रीति . चली आयी है । भर सभ्य मुसुक्लुओं के पाप का बोझा इस प्रतीक के द्वारा दोने का अधिकार सदा से असभ्य उपत्यका-बासी मिद्मियों का रहा है । विकसित नागरिक सभ्यता के पोपों का बोझ अविकसित वन्य जातियों द्वारा ढोंया जाता है। इस सत्य का यह रीति स्वयं कितना सर्थ-पूर्ण प्रतीक है, . इस की और कदाप्चित्‌ दोनों ही पक्षों का ध्यान कभी नहीं जाता होगा |! घ्द् घ्द्ड | क्र ट्रक तक पहुँचते-न-पहुँचते दिन छिप गया । गाड़ी का डायनेमो चार्ज नहीं करता, अतः बत्ती तो जलायी न जायगी, अँधिरे में ही गाड़ी पाना होगा । जितनी जद्ददी हो सके, जंगल का पहला बहुत घना और कीचड़ वाला खंड पार कर लिया नाय, उस के बाद पक्की सड़क पर रुक कर कहीं चाय बनायी जायगी आर फिर चाँद उठ आने पर आगे बढ़ा जायगा.. - . जंगल पार हो दिया. गया | बीच में ' कहीं-कहीं मोड़ों पर रास्ते से _ थोड़ा भटक कर फिर उल्टा लोट कर पथ खोजना पड़ा, किन्ठ विशेष असुविधा न हुई |




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