ब्रह्मचर्य ही जीवन है | Brahmacharya Hi Jeevan Hai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 तत्सत्‌ बह्मचर्य ही जीवन है की महिमा शक कि | न तपस्तप इत्याहुब्रे्चय्य तपोत्तममू | ऊध्वेरेता भवेदू यस्तु स देवो न हु ॥ १ ॥ भगवान्‌ कैलाशपति शंकर कहते हे:--“घ्रह्मचर्य झर्थात्‌ वीर्य घारण यही उत्कप्र तप है । इससे बढकर तपश्चर्या तीनों लोकों मे दूसरी कोई भी नहीं हो सकती । उध्वेरेता पुरुष झर्थात्‌ अखणड-वीय का धारण करने वाला पुरुप इस लोक मे मनुष्य रूप से प्रत्यक्ष. देवता ही है ।” अहा हा ! कया ही महान्‌ इस त्रह्मचये की महिमा है। आज हम इस सहानता को भूल कर नीचता को धूल में दास्यभाव से विचरण कर रहे हैं । कहाँ हमारे वीर्यवान, पूर्वज बोर कहाँ हम उनकी नि्वी्य ओर पद-दुलित टुबेल सन्तान ! कितना यह आकाश पाताल का अन्तर हो गया है ! हसारा हु भयंकर पतन हुआ है ? इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि मैतारा यद्द जो भीपण पतन हुआ है इसका मुख्य कारण एक मात्र




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