ब्रह्मचर्य ही जीवन है | Brahmacharya Hi Jeevan Hai
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.29 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)3 तत्सत्
बह्मचर्य ही जीवन है
की महिमा
शक कि |
न तपस्तप इत्याहुब्रे्चय्य तपोत्तममू |
ऊध्वेरेता भवेदू यस्तु स देवो न हु ॥ १ ॥
भगवान् कैलाशपति शंकर कहते हे:--“घ्रह्मचर्य झर्थात् वीर्य
घारण यही उत्कप्र तप है । इससे बढकर तपश्चर्या तीनों लोकों
मे दूसरी कोई भी नहीं हो सकती । उध्वेरेता पुरुष झर्थात्
अखणड-वीय का धारण करने वाला पुरुप इस लोक मे मनुष्य
रूप से प्रत्यक्ष. देवता ही है ।”
अहा हा ! कया ही महान् इस त्रह्मचये की महिमा है।
आज हम इस सहानता को भूल कर नीचता को धूल में दास्यभाव
से विचरण कर रहे हैं । कहाँ हमारे वीर्यवान, पूर्वज
बोर कहाँ हम उनकी नि्वी्य ओर पद-दुलित टुबेल सन्तान !
कितना यह आकाश पाताल का अन्तर हो गया है ! हसारा
हु भयंकर पतन हुआ है ? इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि
मैतारा यद्द जो भीपण पतन हुआ है इसका मुख्य कारण एक मात्र
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