धर्म के दस लक्षण | Dharm Ke Dash Lakshan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हुकुमचन्द भारिल्ल -Hukumchand Bharill
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दशलक्षण महापवे [] श्र
सकता, पनप नहीं सकता, भ्रथवा इन दोनो के बिना सम्यक्चारित्र की
सत्ता की कल्पना भी नही की जा सकती है ।
यद्यपि-लोक मे बहुत से लोग आत्म-श्रद्धान और झ्रात्म-ज्ञान के
बिना भी बघन के भय एवं स्वमं-मोक्ष तथा मान-प्रतिष्ठा श्रादि के
लोभ से क्रोघादि कम करते या नही करते-से देखे जाते है, तथापि वे
उत्तमक्षमादि दशधर्मों के धारक नही माने जा सकते हैं ।
इस संबंध में महापडित टोडरमलजी के विचार दृष्टव्य हैं -
“तथा बधादिक के भय से भ्रथवा स्वर्गं-मोक्ष की इच्छा से
क्रोधादि नही करते, परन्तु वहाँ क्रोधादि करने का अभिष्राय तो मिटा
नही है । जैसे - कोई राजादिक के भय से अथवा महतपने के लोभ से
परस्त्री का सेवन नही करता, तो उसे त्यागी नहीं कहते । वैसे ही
यह क्रोघादिक का त्यागी नही है ।
तो कंसे त्यागी होता है ? पदार्थ झ्रनिष्ट-इष्ट भासित होने से
क्रोघादिक होते हैं, जव तत्त्वज्ञान के श्रम्यास से कोई इष्ट-्रतिष्ट
भासित न हो, तब स्वयमेव ही क्रोधादि उत्पन्न नही होते; तब सच्चा
घर्मे होता है ।”*
इसप्रकार सम्यग्दर्शन श्रौर सम्यग्ज्ञानपुर्वंक क्रोघादि का नहीं
होना ही उत्तमक्षमादि धर्म है ।
यद्यपि उक्त दशधर्मों का वर्सुन शास्त्रों मे जहाँ-तहाँ मुनिधमें
की श्रपेक्षा किया गया है, तथापि ये धर्म मात्र मुनियो को धारण
करने के लिए नही हैं, गृहस्थो को भी झपनी-श्रपनी भूमिकानुसार
इन को श्रवश्य धारण करना चाहिए । घारण क्या करना चाहिए,
वस्तुत वात तो ऐसी है कि ज्ञानी गृहस्थ के भी अपनी-अपनी
भूमिकानुसार ये होते ही हैं, इनका पालन सहज पाया जाता है |
तत्त्वार्थसूत्र में गुप्ति, समिति, अनुप्रेक्षा (बारह भावना) आर
परीषहजय के साथ ही उत्तमक्षमादि दशधर्मों की चर्चा की गई है ।*
ये सब मुनिधम से सवधित विषय हैं । यही कारण है कि जहाँ-जहाँ
इनका वर्णन मिलता है, उसका उत्कृष्टरूप का ही वरन मिलता है ।
इससे श्रातकित होकर सामान्य श्रावको द्वारा इनकी उपेक्षा सगत
नही है ।
१ मोक्षमा्मंप्रकाशक, पृष्ठ २२८
* स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्ञापरिपहजयचारित्रे (श्र० € सुत्र २)
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