पंडित टोडरमल | Pandit Todarmal

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Pandit Todarmal  by हुकुमचन्द भारिल्ल -Hukumchand Bharill

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डॉ० देवेस्द्रकुमार जन एम०ए०, पी एच० डी ०, साहित्याचार्य प्रस्तावना | प्राच्यापक एवं घ्रध्यक्ष, हिन्दी विभाग, शासकीय एस० एन० स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खण्डवा प्रवृत्ति प्रौर निवृत्ति धम का प्रथं है-वह जो धारण करता है श्रथवा जिसके द्वारा धारण किया जाय । 'प्रश्न है वह क्या है जिसे धारण क्रिया जाता है या जो धारण करता है ?' मनुष्य की मुख्य समस्या है- उसका श्रस्तित्व । उसके सारे भौतिक श्रौर श्राध्यात्मिक कार्य तथा प्रवृत्तियाँ इसी प्रश्न के हल के लिए हैं। वह सोचता है कि क्या उसका भौतिक श्रस्तित्व ही है या श्रौर कोई सूक्ष्म अस्तित्व भी है, जो जन्म श्रौर मृत्यु की प्रक्रिया से परे है? फिर वह जीवन में शुभ-झ्रशुभ प्रवृत्तियों की कल्पना करता है श्रौर श्रपने श्रापको शुभ पथ में लगाना चाहता है । इस गा्हैस्थ जीवन में श्रशुभ प्रवृत्तियों से एकं दम वच पाना नितान्त श्रसंभव है, जीवन की प्रक्रिया ही कुछ ऐसी पेचीदा है। इसलिए वह मान लेता है कि 'शुभाशुभाम्यां मार्गाभ्यां बहति वासना सरित्‌ - यह वासनारूपी सरिता प्रच्छ बुरे मार्गो से बहती है ्रौर उसे प्रयत्नपूवेक अच्छे मागे पर लगना प्मौर ग्रशुभ से बचना चाहिए । दूसरा प्रश्न - दो उत्तर जहाँ तक दूसरे प्रश्न का सम्बन्ध है, उसके दो उत्तर हो सकते हैं । एक तो यह है कि विश्व एक प्रवाह है, जिसमें प्रत्येक वस्तु को उसका स्वभाव धारण करता है । बस्तु स्वभावो ध्मं:' । जल तभी तक जल है जब तक उसमें ठंडक है । श्राग तब तक श्राग है जब तक उसमें गर्मी है । किसी वस्तु को उसका श्रपना भाव ही ( ५» )




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