आधुनिक आर्थिक वाणिज्य भूगोल | Adhunik Arthik Vanijya Bhugol

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनुष्य अथा उसकी परिस्थिति श्प्‌ यातायात की सुविधा के लिए निम्नलिखित बातो का होना आवश्यक हा (१) हिम से मुक्ति--नहीं तो कनाडा तथा रूस की नदियों की भाति उनमें यातायात का कार्य असम्भव हो जाता है । ही (२) पर्याप्त गहराई--ताकि बडे जहाज भी चलाये जा सके। कागो, जेभ्वीसी और अमेजन काफी गहरी नहीं है । इससे उनमे यातायात की कठिनाई है। (३) जल काफी होना चाहिये और तीन्न धारा से मुक्त होना चाहिए। (४) नदिया हिमपोषित होनी चाहिए । हिमपोषित व वर्षापूरित नदियां--हिमपोपित और वर्षापूरित नदियों का उन्तर भली-भाति समझ छेना चाहिए । हिमपोपित नदिया सर्द जरूपूर्ण रहती हूं. परन्तु वर्षापूरित नदिया केवल वर्पाक़्तु मे ही । उत्तर भारत की गगा, सिंघु, ब्रह्मपुत्र, नदिया नौका-सचालन के लिए बडी सुगम हूं । वे माल ले जाने के लिए उत्तम जलमार्ग है तथा जिन विज्याल भागों में से होकर बहती हूं उन्हे धनवान और समुद्ध बनाती हे । इन नदियों पर चाध बनाकर हजारो मील लम्बी नहरें व नालिया बनाई गई है । जिनसे लाखो एकड भूमि को सिचाई होती है । इसके विपरीत दक्षिण भारत की नदिया ग्रीष्मकाल में सूख जाती है , उनमें जलप्रपात हूं तथा उनकी धारा तेज हूं अत यातायात के लिए सर्वथा अयोग्य हूं । ब्राजील, चीन, कोलम्विया तथा रूस में रेमार्गो की कमी के कारण यातायात का कार्य नदियों पर ही निर्भर है । फ़रास, जर्मनो, सयुक्‍्त राष्ट्र अमरीका आदि उन्नत देशो में रेलो के साथ-साथ नदियों द्वारा भी यातायात होता है । सदियों के अन्य लाभ--यातायात के उत्तम साधन होने के अतिरिक्त नदियों के और भी अनेक लाभ हूं । जिन घाटियो से होकर वे वहूती हे उन्हें उवंरा बनाती है । सदियों के किनारो की समतल भूमि मे सभी प्रकार की वनस्पति व व्यापारिक और खाद्य फसले होती हूं । उत्तरी भारत की नदियाँ मैदानों के लिए उत्तम भूमि, खाद, जल तथा जलमार्ग प्रदान करके समृद्धणाली बनाती हें । यदि ये उत्तम नदिया न होती तो ससार के अनेक देग कृषि-उद्योग में अवनत ही रह जाते । मिस्र देश को “नील नदी का वरदान' कहा जाता हूं। यदि नील न होती तो मिस्र भी सहारा प्रदेश की तरह मरु- स्थल होता । परन्तु आज इसी नदी के कारण मिस्र सम्पूर्ण अफ्रीका का अन्न भडार वन गया हूँ । यहा गेहू, कपास, फल और जो आदि प्रचुर मात्रा में पैदा होते है । नील नदी 'एऐवीसीनिया के पवतो से उरव॑रा मिट्टी लाती है और सिंचाई का भी उत्तम साधन है । चर्पो ऋतु में मील नदी वहुत बढ जाती है । इस वाढ को रोकने के लिए बाघ वना दिये गये हैं जिनसे नहरे निकाल कर सारे प्रदेग मे सिचाई का स्थायी प्रवन्ध कर दिया गया हैं । ४. प्राकृतिक बनावट का नियंत्रण--साधारणतया ऐसा देखा जाता है कि नगरो के वसने में पहाड़ों के कारण अनेक वाधाये पड़ती हे। ऊचे विपम पर्वत मनृप्यों के गमनागमन, जनसख्या के वितरण तथा रेलो व सडकों के निर्माण में अत्यन्त वाघक होते है । पवंत प्रधान देशों में मनुप्य के व्यापारो मे भी कठिनाई पड़ती है । अत




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