संस्कृत का अध्धयन उसकी उपयोगिता और उचित दिशा | Sanskrit Ka Adhyayan Uski Upyogita Aur Uchit Disha

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Sanskrit Ka Adhyayan Uski Upyogita Aur Uchit Disha by राजेंद्र प्रसाद - Rajendra Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संस्कृत का साषा-विज्ञान ण थे, शथवा उस समय मैं श्रे, जब दसने इतनी उन्नति की थी, तो झ्ाज संसार के सामने उस विपम समस्या का कोई हल हम न वतला सकते, जिसके कारण श्राज इतनी उथल-पुथल श्र खून-खरावी हो रही है ? आइए, पहले दम यह देखें कि संस्कृत साहित्य में कौन-कौन से श्रमूल्य रत्न मरे पड़े हैं, उनकी क्या कीमत दै श्रौर उनकी क्या उपयोगिता रही है । 8 र. संस्कृत का भाषा-विज्ञान, व्याकरण, वर्णमाला, लिपि ओर अंक श्रंग्रेजी राज्य की स्थापना हुए श्राज प्रायः १७४. बरस दो चुके हैं । श्रंग्र जो में से कतिपय विद्वानों ने हमारे श्रंयों का पठन-पाठन ग्रायः १५.० वरम हुए श्रारंम किया शरीर बारिन देस्टिंग्त के समय मैं ही एशियाटिक सोसाइटो द्ाफ बंगाल कायम की गई सर विलियम जोन्स प्रभति विद्वानों से सशक्त साहित्य के भांडार को देखना और उसकी कीमत द्ाँकना द्आर्रंम किया । यूरोप के अन्य देशों में भी--विशेषकर जर्मनी, फ्रांस श्ौर रूख में--चढाँ के विद्वान संस्कृत का श्रम्यास करने लगे श्रौर इन १५० यरसीं सें उन्होंने श्रपनी भाषाओं में श्रनसिनत ग्रंथ लिख डाले हैं । हमारे देश में आकर श्रथवा वड़ीं यों को मँगवाकर उनके मंथन मैं वे इतने दत्तन्वित्त हुए कि बहुत सीजों में हमारे देश के लोगों का ध्यान भी पहले-पहल उन्होंने दी श्राकर्षित किया | इस देश से कितनी इस्तलिखित पुस्तकें वे ले गए | श्ाज यूरोप के किंसी-किसी संग्रहालय में तो इतने संस्कृत-प्राकृत अं थ मौजूद हैं, जितने हिंदुस्तान में भी विरले ही स्थानों पर ईं। उन्होंने संस्क्ूव का अभ्यास केवल मनोविनोद के लिए, नहीं किया । इस माषा के ज्ञान पर ही आज के यूरोपीय भाषा-विज्ञान ( 10108 ) की नींब पढ़ी है |




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