आहुति | Aahuti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about इलाचन्द्र जोशी - Elachandra Joshi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मादुति
को रख दिया । उसके बाद स्वय कक लोहे की कुर्सी पर बेटकर चाय कप अ
चाउने 'झयी । इस समय उसके मुख की घी या बहुत लकी हो भाई थी
और मुस्कान को प्राय अब्यक्त सी झलक रामनाथ की दिखाई देने लगी थी |]
चाय डालते हुए उसने सहज भाव से कहा र]सनौथ में आज तुमसे एक बात
पुन] चाहती हू । वचन दो कि तुम सीधा भ्रौर सच्चा उत्तर दोगे श्यौर कोई
बात सुमसे नहीं छिपामोंगे |
मै बचन देता हू मार्या !
तर बताशो कि इप साड़ी के लिये तुम्एर पास रुपये का से श्ाये
मोर मदर की जो सपये तुमने दिये व तुम कहाँ से मिं. गये ? तुमने मुमसे
तो कहा था कि तुम बकार हो ।
रामनाथ क्षण पर वी. लिये चुप रहा ।. से कण भर के लिये. उसके मुख
की सुददी एसी विचित्र बीभत्स भयानक शोर साथ ही करण बन गयी ैम
बह कसी सार्मिफ पीडन और प्राणघाती एटठन से विकड हो रहा हो । उसके
बाद स सा उसके मुद्द के भाष में. न जान किस श्रज्षात जादू के फलस्वरूप
आमृड परिवतन हो गया । उसकी थाखों मेँ उसके रवभाव के विपरीत एक
भाइ'चयंजाक साहसिकता भाउकने लगी | उससे के [- तो तुम सच बात जनाना
चाहती हो माथा ? थे कन्ते हुये जब बद्द मार्था की आओोरदेख र 1 थातो
“नस सा गाया कि माया वी इसके पतले अपने श्रतर के इतने निकट उसमे
कभी नहीं पाया |
तुम कुछ मी उिपाओगे तो में ता. जाऊगी -चाथ में बीनी मिलातें
हुए मार्थी ने क 1 |
तो छुनी 1 मैने आज एक भादमी की गिरह काटी है और यह पेशा मैं
बहुन दिना से करता श्राया हू मार्था |
मार्था हाथ में जी चाय का प्याला छेकर रामनाव की ओर बढ़ाने जा रही
थी नह सहसा उसके हाथ से मेज पर पिंरा । प्याला नठने से बच गया
नम
User Reviews
No Reviews | Add Yours...