कोई शिकायत नहीं | Koi Shikayat Nahin

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पायन “नहीं, अभी रात नहीं हुई है, दो-तीन पहरेदार अभी खड़े पहरा दे रहे हैं, परंतु अंधेरा भी बहुत बढ़ रहा है, ओर ये पहरेदार, शायद सुबह ह'ने से पहले ह। कत्ल कर दिये जाय॑ ।” “-पिश्मरी চা থাল ६ अगस्त १६४२ को सुबह टीक पांच बजे बंबई की पुलिस श्रचानक हमारे घर पहुँची । उनके पास जवाहर शोर राजा की गिरफ्तारी कै वारंट थे । आल इंडिया कांग्रेस कमिटी के जल्नसों में कई दिन फे भारौ काम की वजे हम सब थकान से चूर थे । रात को बहुत देश्तक हम सब बेटे ह्वाल की बातों पर बहस करते रहे । आधी रात को हमारे मेहमान चले गए ओर जबाद्दर, राजा और में उसके बाद भी एक घंटे ओर बात करते रहे । फिर हम सब्र सो गये । रात को इतनी दैर स्क जागने के बाद व्रर्‌ तके जगाया जाना ही काफी बुरा था, पर अ्रपने दरवाजे पर उस समय पुलिस को मौजूद पाना उससे भी ज्यादा बुरा था । जब दरवाजे की घंटी बजी तो में गहरी नींद में थी; फिर भी में घंटी सुनते ही उठ बेढी और मुमसे किसी के यह कहने की जरूरत न पढ़ी कि पुलिस आगई है। उस यक्त सिवाय पुलिस के और आा भी कोन सकता था ! में ऊल्दी से जवाहूर के कमरे में गई, यहद्द सोचकर कि घारंट सिर्फ उन्हीं के लिए होगा । वह बहुत ज्यादा थे हुए थे । इसलिए उनकी आंखे भी नहीं खुल रही थीं श्रोर न वह श्रभी ठीक से जग ही पाये थे । चंद मिनट के भीतर हमारा घरभर जाग गया श्रौर जव हमने यह समझ द्षिया “कि होनदार ्ोकर ट रहती हेतो दम सव जवाहर का सामाने




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