अमृत की खोज | Amrit Ki Khoj

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Amrit Ki Khoj by डॉ. राजकुमार वर्मा - Dr. Rajkumar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ : अमृत की खोज नीला ओवरकोट टंगा हुआ है । उसके नीचे लकड़ी का एक 'पेडास्टल' है। एक 'बेसिन” में अंग्रेजी के कुछ कटे हुए अक्षर रखे हैं । पीछे को ओर लगे हुए लाल बल्ब से वे अक्षर चमक सकते हैं । कमरे में एक क्लाक ठँगी हुई है जिसमें सात बजकर पन्द्रह मिनट हुए हैं । जाड़े के दिन हैं । डॉ० शेखर इस समय भी बाहर जाने के वस्त्र पहने हैं । हल्के हरे रंग का सुट है। उनकी अवस्था लगभग ४० वर्ष की होगी, लेकिन कार्य करने से वे अधिक आयु के ज्ञात हो रहे हैं। मुख पर कायशीलता की रेखाएं हैं । किसी समय सुन्दर थे; यह उनके नेत्र और कपोल-गह्ूर से ज्ञात होता है । अष्टभुजी शीशे का बेकमानी चश्मा । बाल कुछ अस्त-व्यस्त । टाई की “नाट' ढीली होकर एक ओर खिसक्त गई है । मुख पर गंभीरता और अंगुली में अंगुठी। जेसे उनकी सारी सॉंदयप्रियता सिमटकर अँगुठी सें आ गई है और शरीर गंभीर झौर शुष्क-सा रह गया है। वे अत्यन्त स्पष्ट और धीरे बोलते हैं । उनके समीप ही उनका असिस्टेंट विनय खड़ा हुआ है। बहू एक साधारण सुट॒ पहने हैं । उनकी उस लगभग २५ वर्ष की होगी । वह अत्यन्त संजोदे ढंग से बोलते हैं । कार्य में सावधान और व्यवहार में व्यवस्थित । डॉ० शेखर अपने “एपराटस' के एक भाग को ठीक करने के अंतर रूमाल से अपना सुख पोंछते हुए आगे बढ़ते हैं 1:




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