इतिहास के महापुरुष | Itihas Ke Mahapurush

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Itihas Ke Mahapurush by जवाहरलाल नेहरू - Jawaharlal Neharu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| इतिहास के महापुरुष हो रही थी । थीब्स नाम के एक यूनानी शहर ने सिकन्दर का झ्राधिपत्य नहीं माना श्रौर बगावत कर दी । इसपर सिकन्दर ने उसपर बड़ी करता और निर्देयता के साथ आ्राक्रमण करके उस मशहूर शहर को नष्ट कर दिया, उसकी इमारतें ढहा दीं, बहुत-से नगर-निवासियों को क़त्ल कर डाला श्रौर हज़ारों को गुलाम बनाकर बेच दिया । इस ऋर बर्ताव से उसने यूनान को श्र भयभीत कर दिया । सिकन्दर के जीवन में बबेरता की यह श्रौर इसी तरह की दूसरी घटनाएं ऐसी हैं, जिनकी वजह से सिकन्दर हमारी नजरों में तारीफ़ के क़ाबिल नहीं रह जाता । हमें उससे नफ़रत पेदा होती है श्रौर हम उससे दूर भागने की कोशिश करते हैं । सिकन्दर ने मिस्र को, जो उस वक्‍त ईरानी बादशाह के शभ्रधीन था, ग्रासानी से जीत लिया । इसके पहले ही वह ईरान के बादशाह तीसरे दारा को, जो क्षयाशं का उत्त राधिकारी था, हरा चुका था । बाद में उसने ईरान पर फिर हमला किया श्रौर दारा को दूसरी बार हराया । दहंशाह दारा के विज्ञाल महल को उसने यह कहकर तहस-नहस कर दिया कि क्षयाशं ने एथेन्स को जो जलाया था, उसीका यह बदला है । फ़ारसी भाषा में एक पुरानी किताब है, जो फिरदौसी नामक कवि ने एक हज़ार वर्ष हुए, लिखी थी । उसे “शाहनामा' कहते हैं। यह ईरान के बादशाहों का एक सिलसिलेवार इतिहास है । इनमें दारा श्रौर सिकन्दर की लड़ाइयों का बहुत काल्पनिक ढंग से वर्णन किया गया है । उसमें लिखा है कि सिकन्दर के हार जाने पर दारा ने भारत से मदद मांगी । “हवा की तरह तेज़ रफ्तार से चलनेवाला ऊंट-सवार' पुरु या पोरस के पास पहुंचा, जो उस समय भारत के उत्तर-परिचम में राज्य करता था । लेकिन पोरस उसकी जरा भी मदद न कर सका । थोड़े दिनों बाद उसे खुद ही सिकन्दर के हमले का मुकाबला करना पड़ा । फिरदौसी के इस दयाहनामे में एक बड़ी दिलचस्प बात यह है कि उसमें भारत की तलवारों श्रौर कटारों का ईरानी राजाओं श्र सरदारों द्वारा इस्तेमाल किये जाने का बहुत काफ़ी जिक्र है। इससे पता चलता है कि सिकन्दर के ज़माने में भी भारत में बढ़िया 'फौलाद की तलवारें बनती थीं, जिनकी विदेशी मुत्कों में बड़ी कदर थी । सिकन्दर ईरान से भझ्रागे बढ़ता गया । उस इलाके को, जहां प्राज ईरान,




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