भागवत धर्म अथवा जीवन की कृतार्थता | Bhagwat - Dharm Athava Jivan Ki Kritarthata

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Bhagwat - Dharm Athava Jivan Ki Kritarthata by हरिभाउ उपाध्याय - Haribhau Upadhyay

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हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मागवत-घम जीवन की कताथता ( श्रीमदूभागवत का ११वां स्कन्ध ) अध्याय १ ले ९ श्रीकृष्ण--अन्तिम कसाटी पर [महापुरुप संसार में बुराइयो वो. मिटाने व भलाई को फैलाने के लिए, आते है। इस उद्देश वी पूति के लिए वे जरूरत होने पर खुद अपने श्रात्मीयो का भी त्याग करने मे नहीं हिचकिचाते | श्पने उद्देश के प्रति एकाग्रता व अपने पराये के भेद से परे रहसे की उनवी वत्ति की यही कसौटी है । श्रोरामचन्द्र का सीता-परित्याग प्रसिद्ध ही है । श्रीकृष्ण भी इस कसौटो पर द्पने को खरा उतारते है। श्री शुकदेवजी परीक्षित से बोले--“हे राजन ! बलरामजी के सहित तथा यादवों से घिरे हुए श्रीकृष्णुचन्द्र ने दैत्यों को मारकर और (कोरव-पाण्डवों में) घोर युद्ध ( महाभारत ) कराकर प्रथ्वी का भार उतार दिया था ॥ १ ॥” दि यह प्रसिद्ध है कि भ्रधमं के उच्छेद व धर्म की स्थापना तथा सजनों की रत्ता व दुर्जदो को दण्ड दे ने के लिए श्रीकृष्ण का श्रवतार हुच्ा था । उन्होंने खुद बलरामजी से कहा था--'एत्थे हि नो जन्म साधूनामीश शमंकृतू” (भा० स्कं० १० अ० * श्लो० १४ ) भागवत, गीता, श्ादि १ “पे ्रजवासी मेरे शरणागत है। ये मुखे ही अपना एकमात्र आश्रय व. रक्षक समभते है । ऋ्रतः मै श्रपने योग-सामर्थ्य से उनकी रक्षा करू गा । यही मेरा त्रत है ।” इन्द्र-“धर्म को रक्षा ओर दुष्टो का दमन करने के लिए शाप दणएड धारण करते है ।” “जो असुर केघल अपना ही भरणु-पोषण करनेवाले श्र प्थ्वी पर महान्‌ भार की उत्पत्ति के कारण हैं उनका नाश करने के लिए तथा श्रपने चवरणु-चिह्ीं का श्नुवर्तन करनेवाले भक्त जनों की रक्षा के लिए ही आपका यह ्रवतार हु है ।”” सुरभि--'हम सब ब्रह्माजी की प्रंरणा से श्रापको श्रपना इन्द्र मानकर भिपेक करेगी । है विश्वात्मन्‌ , आपने प्रथ्वी का भार उतारने के लिए ही भूमणडल में वतार लिया है|” “्यास्तव मे तो भगवान्‌ झव्यय, श्प्रेय; निशुण त्रौर गुणों के द्धिष्टान है, मनुष्यों के कल्याण के लिए ही उनका सगुण रूप से श्रवतार होता है ।” परीक्षित---“भगवन्‌ ; जगत्पति भगवान्‌ कुष्णु ने धर्म की स्थापना और अधम के उच्छेद के लिए ही अपने पूर्ण अर श से श्रवतार लिया था ।”? -भागवत | “पपरित्राणाय साधूना विनाशाय च दुष्कृताम्‌ । ः घर्म-सस्थापनार्धाय॒ सभवामि युगे. युगे ॥ ( गीन)




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