मानवतावाद और शिक्षा पूरव और पच्छिम के देशो में | Manavtavad Aur Shiksha Purav Aur Pachchim Ke Desho Me

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सानवतावाद श्ौर शिक्षा बमरीकन विचार-घारा के एव और पहलू की झोर भी मिंदेश विया, झ्ौर वह यहूं कि विरोधी दार्शनिक दृष्टिकोणो में परस्पर सहिष्णुता का सिद्धान्त वडा महत्वपूर्ण है, क्योकि उससे व्यवहारिक सपर्पों को मिटाने और सैंद्वान्तिग' समान- शाएँ खोज मिवालने का एक झाधार मिल जाता है । बाद के वक्‍ताझों में इस वियय को ले गर कुछ मतमेद हुआ, कि विज्ञान और शिक्षा में वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने की ठीक-ठीवा स्थिति क्या होनी चाहिये । पूरव के एक सदस्य ने विज्ञान को सर्वेथा हेय बतलाया ।. जहाँ तब वहू देख सकते थे, म्राज की दुनिया में विज्ञान का दो ही प्रकार रुपयोग होता है, एक तो उद्योग में भर दूसरे लडाई में । थे दोनो ही उपयोग खेदजनक है। परन्तु प्न्य वक्‍ताय़ों ने विज्ञान का पक्ष लिया।. उन्होनें कहां कि विज्ञान को केवल उपयोग की दृष्टि से देखना कोई श्र्थ नहीं रखता |. शान के स्वय सिद्ध होने वा सिद्धान्त वैज्ञानिक पर उतना ही सागू होता है, जितना मानवतापादी पर । श्रौर यह बहना भी चविज्ञान दे साथ श्रन्याय करना है वि थिक्षा पर इसका प्रभाव अआवश्यव' रूप से भौतिववादी ही होगा। उन्नीसवी सदी के भ्रन्त में धायद यह चात ठीव' हो, परन्तु १६०० के याद से इस वात के भझनेवा सबेत मिलते है, कि मनुष्य बे व्यक्तित्व में सविचार तादिक विवेक का वह पुराना प्ाघान्य अब वैज्ञानिकों की' दृष्टि में नही रहा है।. वर्गसा के' दार्शनिक सिद्धान्त इस का एक' उदाहरण है । इस विचार-विमशं के फलस्वरूप अन्य सदस्यों नें यह सुझाव रखा वि. सूनिवर्सिटी-स्तर पर विज्ञान के भ्रध्यापन में दर्शन को भी स्थान देना चाहिये । परन्तु यह्ट दर्शन सच्चा दर्शन होना चाहिये, जिसे दार्शनिव' विद्वान पढ़ायें ने कि “दंत भा इतिहास पहलानेवाली पुस्तकों में दी हुई व्याख्या, जिनसे विद्यार्थीगण समझ बैठते है कि उन्होंने दर्शन मे सिद्धान्तों को समझ लिया है जब वि वास्तव में--उन्हांने बेबल दार्शनिक की जीवनियो को पढ़ा होता है। तुर्की के वक्ता ने इस बात वी श्रोर निर्देश विथा दि दार्यनिव' अ्घ्यापन दो प्रकार का होता है-- एवं तो मिद्धान्तों वा सिनेमावत्‌ दिग्दर्शन, जिससे सथसवाद पैदा होता है, श्रौर ट्ररे पद सुपररो आर विस्तररों दो दारा सातय दियारप्यारा दे विवात नी सररुपना, जो समस्यामों वा इतिहास्त मात्र है, थौर जिनसे बिसी श्रष्टित वी सम्भावना नहीं है 1 सामान्य रूप रे सम्मेलत ने भमरीकी ववनां दे इस चथन सो स्वीपार घर लिया दि शिक्षा देनेवाज़्ो थी दो बाम अवर्प वरने चाहिये, (व) विदोपज्ञ वो उसका सास सिसाना, (से) विशेषज्ञ भौर भविरोपश दोनो को विलारमीम श्द हु




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