चिंतामणि २ | Chintamani 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Chintamani 2  by विश्वनाथ प्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विश्वनाथ प्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra

Add Infomation AboutVishwanath Prasad Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
* काव्य में 'प्राकृतिक दृश्य ही करना जानते हैं उनका साथ सच्चे भावुक सहदयों को वैसा ही दुःख- दायी होगा जैसा सबज्जनों को खलों का । हमारे प्राचीन पूच॑ंज भी उपबन और चाटिकाएँ लगाते थे । पर उनका आदशें कुछ ओर था। उनका आदरशे वही था जो अब तक चीन और योरप में थोड़ा-वहुत वना हुआ है । ब्याजकल के पार्कों में हम भारतीय अआदश की छाया पातें हैं । हमारे यहाँ के उपबन वन के प्रतिरूप दी होते थे । जो वनों में जाकर प्रकृति का शुद्ध रवरूप और उसकी स्वच्छ्द क्रीड़ा नहीं देख सकते श्रे वे उपवों में ही जाकर उसका यथोढ़ा-वहुत अज्लुभव कर लेते थे । वे सचंत्र अपने को ही नहीं देखना चादते थे । पेड़ों को मनुष्य की कवायद करते देखकर ही जो मलुप्य प्रसन्न होते हैं वे झपना ही रूप सबंत्र देखना चाहते हैं ; अहृंकार-वश अपने से वादर प्रकृति की ओर देखने की इच्छा नहीं करते । काव्य का जो चरम लक्ष्य सुबेभूत को आत्मभूत कराके अनुभव कराना है ( द्शन के समान केवल ज्ञान कराना नहीं ) उसके साधन में भी अहंकार का त्याग आवश्यक है । जव तक इस अहंकार से पीछा न छूटेगा तव तक प्रकृति के सब रूप मनुष्य की अनुभूति के भीतर नहीं आ सकते । खेद है कि फारस की उस महफिली शायरी का कुसंत्कार भारतीयों के हृदय में थो इधर वहुत दिनों से जम रह्दा है जिसमें चमन, गुल, बुलचुल॒, लाला, नरगिस आदि का ही कुछ बशुन विलास की सामग्री के रूप में होता है--कोह, चयाबान आदि का. उल्सेख किसी भारी विपत्ति या दुर्दिन के ही प्रसंग में सिलता है । फारस में क्या और पेड़-पौरे नहीं होते ? पर उनसे वहाँ के शायरों को कोई सतलव नहीं अलबुजे जैसे सुन्दर पहाड़ का विशद चणन किस फारसी काव्य में हैं ! पर इधर वाल्मीकि को देखिए । उन्होंने प्राकृतिक दृश्यों के चणंन में केवल मंजरियों से छाए हुए रसालों; सुरमित सुमनों से लदी हुई मालती- लताओं, सकरन्द-पराग-पूरित सरोजों का हो बन नहीं किया ; इंगुदी, अ्ंकोट, तेंदू, बचूल, वहेड़ें आदि जंगली पेड़ों का भी पूण तल्लीनता के साथ चुन किया है । इसी प्रकार योरप के कवियों ने भी अपने गाँव




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now