प्राचीन गूर्जर काव्य संचय | Pracin Goorjar Kavya Sanchaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahta
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ह. चू भवाणी - H. Choo. Bhavani
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पथ
१०, अमयतिलक-ये श्रीजिनेदवरसूरि के दिष्य थे और लक्ष्मीतिलक की भाँति बडे विद्वान
थे । देमचन्द्र के संस्कृत दयाश्रय काव्य की बृत्ति से. १३१२. दीवाली के दिन पालनपुर
में बनायी । “न्यायालेकारटिप्पण”, “वादस्थल' तथा कई स्तोत्र भी आपके प्राप्त हैं। प्रस्तुत ग्रे
में 'महावीर-रास' छपा है जो पहले. जिन युग” में भी छपा था । फिर हमें इस रासक्ी और
भी प्रतियां मिली । दो प्रतियोंके आधार से इंसका संपादन किया गया है | सं. १२९१
वे, झु. १० जाबालिपुर में. इनकी दीक्षा और सं. १३१९ मिगसर सुदि ७ की आपको
उपाध्याय 'पद मिला, उसी वर्ष में इन्होंने उज्जयिनी में तपामत के पं. विद्यानन्द को जीतकर
जयपत्र प्राप्त किया ।
११. जिनपद्सूरि-इनके सम्बन्ध में हमारा . दादा जिनकुददालसूरि' द्रव्य है । '...
१२,- विनयचद्रसूरि- इनके रचित -'नेमिनाथ-चतुष्पदिका” प्रस्तुत अन्थ में छपी है. जिसमें
बारहमासों का वर्णन है । ये रत्नसिंहसूरि के शिष्य थे और १४वीं शताब्दी. के प्रारम्भ में
हुए हैं । »
१३. देपाल-इनकी तीन लघु रचनाएं इस ग्रन्थ में छपी हैं। देपाल 'बहुत प्रसिद्ध कवि
हुए. हैं और इनकी रचनाएं भी काफी मिलती है । इसके. जीवनप्रसंगों और स्वनाओं पर
बिचार करने से देपाल नामक दो .कवि हुए संभव है । क्योंकि “जंबू-चौपाई' सं. १५२२ और
कुछ अन्य रचनाएं: इसके बाद की भी मिलती है जब -कि प्रबन्ध अ्न्थों से ये .पन्द्रवीं- झती
में हुए लगते हैं ।
१४, जिनेश्वरसूरि-इनके रचित महावीर ज्माभिषेक' प्रस्तुत अन्थ में छपा है व “शांति-
नाथ बोली में श्रीमालनगर में इनके स्थापित शांतिनाथ प्रतिमा का उल्लेख है । 'युगप्रधाना-
चार्य . गुर्वावली* और “ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह .में इनका जीवनचरित्र छपा है । इनके
: रचित “श्रावकघमंविधि” . की स्वना सं.. १३१३ पालनपुर में हुई । “चन्द्रप्रभ-चरित्र' और
कई स्तोत्रकुलकादि आपके रचित १०५ अन्य लघु रचनाएं भी प्राप्त हैं ।
१७. ज़िनवट्लभसूरि-प्रस्तुत .ग्रन्थ के अन्तमें 'नवकार-फाग-स्तवन” छपा 'है, इसके अं-
तिम पद्य में “गुरु जिणवब्लभसूरि भणइ” पाठ है इससे इसके रचयिता श्री निनवंस्लभसूरि
या इनके दिष्य होने की संभावना है । चारहवीं झाती के जिनवल्लभसूरि बहुत बडे विद्वान
आचाय हुए, हैं । 'नवकार-स्तवंन” की पन्द्रहवीं शती के पूर्व की कोई प्रति नहीं मिलती एप
भाषा में परवर्ती .प्रभाव अधिक है ।
जैसा कि पहले कहा गया है, इस अन्थ में प्रकाशित बहुतसी रचनाओं की एक एक
प्रति ही मिली । कई स्चनाओं के पाठ भी आदि अंतमें नुटक मिले हैं । पाठ में काफी
_ सयुद्धियां भी थी फिर डा० भायाणी जी ने काफी परिश्रम करके पाठों का संपादन किया है।
जिन स्चनाओंकी एक से अधिक प्रतियाँ मिली उनका . पाठ तो पर्यात झुद्ध हो गया परन्तु
जिनकी अन्य प्रतियाँ नहों मिलीं या. त्रटक मिलीं उनकी पूरी व झुद्ध प्रतियाँ कहीं प्राप्त हो
जाये तो ठीक हो । प्रस्तुत संग्रह में तेरहवीं शती तक की विविध प्रकारकी स्चनाएं: हैं इनमें
“ संघि, घोर, रास, चचरी, ' भास, फाग, . चतुप्पदिका, बारहमासा, वीवाहला, घवल, तलहरा,
बोली, कलद, जन्मामिषेक, संवाद, दोहा, दंगडड, स्तवन संज्ञक रचनाओंका . समावेदय ' है ।
यश ब.
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