प्राचीन गूर्जर काव्य संचय | Pracin Goorjar Kavya Sanchaya

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अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahta

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ह. चू भवाणी - H. Choo. Bhavani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पथ १०, अमयतिलक-ये श्रीजिनेदवरसूरि के दिष्य थे और लक्ष्मीतिलक की भाँति बडे विद्वान थे । देमचन्द्र के संस्कृत दयाश्रय काव्य की बृत्ति से. १३१२. दीवाली के दिन पालनपुर में बनायी । “न्यायालेकारटिप्पण”, “वादस्थल' तथा कई स्तोत्र भी आपके प्राप्त हैं। प्रस्तुत ग्रे में 'महावीर-रास' छपा है जो पहले. जिन युग” में भी छपा था । फिर हमें इस रासक्ी और भी प्रतियां मिली । दो प्रतियोंके आधार से इंसका संपादन किया गया है | सं. १२९१ वे, झु. १० जाबालिपुर में. इनकी दीक्षा और सं. १३१९ मिगसर सुदि ७ की आपको उपाध्याय 'पद मिला, उसी वर्ष में इन्होंने उज्जयिनी में तपामत के पं. विद्यानन्द को जीतकर जयपत्र प्राप्त किया । ११. जिनपद्सूरि-इनके सम्बन्ध में हमारा . दादा जिनकुददालसूरि' द्रव्य है । '... १२,- विनयचद्रसूरि- इनके रचित -'नेमिनाथ-चतुष्पदिका” प्रस्तुत अन्थ में छपी है. जिसमें बारहमासों का वर्णन है । ये रत्नसिंहसूरि के शिष्य थे और १४वीं शताब्दी. के प्रारम्भ में हुए हैं । » १३. देपाल-इनकी तीन लघु रचनाएं इस ग्रन्थ में छपी हैं। देपाल 'बहुत प्रसिद्ध कवि हुए. हैं और इनकी रचनाएं भी काफी मिलती है । इसके. जीवनप्रसंगों और स्वनाओं पर बिचार करने से देपाल नामक दो .कवि हुए संभव है । क्योंकि “जंबू-चौपाई' सं. १५२२ और कुछ अन्य रचनाएं: इसके बाद की भी मिलती है जब -कि प्रबन्ध अ्न्थों से ये .पन्द्रवीं- झती में हुए लगते हैं । १४, जिनेश्वरसूरि-इनके रचित महावीर ज्माभिषेक' प्रस्तुत अन्थ में छपा है व “शांति- नाथ बोली में श्रीमालनगर में इनके स्थापित शांतिनाथ प्रतिमा का उल्लेख है । 'युगप्रधाना- चार्य . गुर्वावली* और “ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह .में इनका जीवनचरित्र छपा है । इनके : रचित “श्रावकघमंविधि” . की स्वना सं.. १३१३ पालनपुर में हुई । “चन्द्रप्रभ-चरित्र' और कई स्तोत्रकुलकादि आपके रचित १०५ अन्य लघु रचनाएं भी प्राप्त हैं । १७. ज़िनवट्लभसूरि-प्रस्तुत .ग्रन्थ के अन्तमें 'नवकार-फाग-स्तवन” छपा 'है, इसके अं- तिम पद्य में “गुरु जिणवब्लभसूरि भणइ” पाठ है इससे इसके रचयिता श्री निनवंस्लभसूरि या इनके दिष्य होने की संभावना है । चारहवीं झाती के जिनवल्लभसूरि बहुत बडे विद्वान आचाय हुए, हैं । 'नवकार-स्तवंन” की पन्द्रहवीं शती के पूर्व की कोई प्रति नहीं मिलती एप भाषा में परवर्ती .प्रभाव अधिक है । जैसा कि पहले कहा गया है, इस अन्थ में प्रकाशित बहुतसी रचनाओं की एक एक प्रति ही मिली । कई स्चनाओं के पाठ भी आदि अंतमें नुटक मिले हैं । पाठ में काफी _ सयुद्धियां भी थी फिर डा० भायाणी जी ने काफी परिश्रम करके पाठों का संपादन किया है। जिन स्चनाओंकी एक से अधिक प्रतियाँ मिली उनका . पाठ तो पर्यात झुद्ध हो गया परन्तु जिनकी अन्य प्रतियाँ नहों मिलीं या. त्रटक मिलीं उनकी पूरी व झुद्ध प्रतियाँ कहीं प्राप्त हो जाये तो ठीक हो । प्रस्तुत संग्रह में तेरहवीं शती तक की विविध प्रकारकी स्चनाएं: हैं इनमें “ संघि, घोर, रास, चचरी, ' भास, फाग, . चतुप्पदिका, बारहमासा, वीवाहला, घवल, तलहरा, बोली, कलद, जन्मामिषेक, संवाद, दोहा, दंगडड, स्तवन संज्ञक रचनाओंका . समावेदय ' है । यश ब.




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