गीता का भक्तियोग | Geeta Ka Bhaktiyog

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| श्रीदरि ॥ प्राक्कथधन पराकतनसद्न्ध. परत्रह्म. मराकति 1 स्ोन्दर्यसारसर्वर्स्स चन्दें सन्दात्मज मदर ॥ प्रपन्वपारिज्ञाताय .... तोत्तवेबरपाणये । न्ञानसुदाय कृप्णाय गीतासतदुददे नम ॥ वसुदवसते. देव. फंसचाणूरमर्दनम्‌। 'देबसीपरसानन्द क्ृप्ण घन्दे जगडुरुम ॥ चडीविभूपित कऊराझयनीर दाभाद, पीताम्परादरणविस्पफलाधरोछात्‌ । पूर्ण दुखुन्दरमुस्तादरविन्दनेनाव्‌ कृष्णात्पर किमपि सत््यमहद न जाने ॥ यावधचिर ज्ञनेमज. पुरुष जरन्तें संचिन्तयामि निखिले जगति स्फूरन्तम्‌। त्ताथदू चलात्‌ स्फुरति हस्त इृदन्तरेमे गोपस्य को5पिं शिशुर्जनपुज्मज्जुः ॥ श्रीमद्गयद्वीता एक अत्यन्त पिश्क्षण और अढौफिक प्रन्थ है | चारो बेद्रोका सार उपनिपद्‌ू «४ और उपनिपर्दोका भी सार श्रीमद्रगयड़ीता ६ ! यदद खय भी अ्रमर्विकता बर्गन होनेसे उपनिंपद्- सरूप और श्रीमगयानफी याणी होनेसे बेद-खरूप है । इसमें सय श्रीभगयानूने अपने प्रिय सखा अजुनकों अपने हृदयके यूढ़ भाय पिशेपरूपसे ये हैं | जैंसे वेदोमें तीन याण्ट हैं--फर्मकाण्ट, उपासनाफाण्ड और ज्ञानराण्ड, बैसे ही गीनामें मी तीन कार्ड हैं । गीताफा पढ़ला पटक था




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