जीवंधरचम्पू | Jivandharachampu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ्रयमों लम्ब: 1 <्,
घर्मार्थयुग्मं किल काममूलमिति म्सिद्ध नूप नौतिशास्त्रे ।
मूले गते कामकथा कथे स्यात्केकायितं वा शिखिनि प्रणष्टे ॥ २३ ॥
ऊवश्यामनुरागतः कमलभूरासावकीर्णी क्षणा-
त्पार्वत्या: प्रणयेन चन्द्रमकुटो5प्यर्धाड्जनो डजायत ।
विष्णु: स्त्रीप विलोलमानसतया निन्दास्पद सो5प्यभू-
दुद्धो5प्येवमिति मतीतमखिलें देवस्य श्थ्वीपते ॥ ३४ ॥
इत्यादिनीतिप्रच्नुरा वाणी राज्ञो न संस्थिता ।
कामनजरिते चित्ते श्षीरं छिद्रघटे यथा ॥ ३५ ॥
तदनन्तरमयं सितिपतिरिक्षुचापशरलक्ष्यतया मोहाक्रान्तचेतनः
काछ्ठान्तरविदितदुराचारं काष्ठाज्ारमाहयानीय च विजन देशमित-
मुवाच ।
कामसाम्राज्यमस्माभिः पाल्यते यप्लिरन्तरमू ।
तत्पाल्यतामिदं राज्य॑ भवतावहितात्मना ॥ ३६ ॥
इति नरपतिवाणीमाहरन्लेष तोषा-
त्ञतिंवचनमुवाच श्रीमता न्यस्तभारम् ।
नप न हि परिशक्रोम्यद्य वोढूं समस्तं
वृषभ इव करीन्द्रेणार्पित तुड्मारम् ॥ ३७ ॥
तुरगस्य खरा यथा विलासं गरूडस्येव गतानि कुक्कुटः ।
चटकः कछहंसकस्य यद्वत्तत मागे न हि गन्तुमुत्सहे ॥ ३८॥
इति सप्रश्रयमाठपन्त॑ कुतुककोरकितस्वान्ते भूपतिवंचनान्तरमत्र
न वक्तव्यमिति नियम्य, धन्योडस्मीति तह्तिदेश॑ शिरसि निद्धानें
राज्यभार नियेाज्य, प्रतिदिनमेघमानरागलतालवालायितहदयों विष-
यसुग्बाविवश्ञ: कानिचिदिनानि निनाय ।
अथ कदाचिदवसतन्नायां निशायां वारुणीसुवासिनीकज्नलकाछे-
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