जिनहर्ष ग्रंथावली | Jinharsh Granthavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
604
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मभिका
भारतीय साहित्य को जेन विद्वानों का जो योगदान मिला है, उसकी
गरिमा बहुत ऊची है । उनकी साहित्य-साधना प्राचोत काल से आज
तक सतत प्रकादामान रही है और इसका अत्यन्त महत्वपूर्ण फल प्रास हुआ
है। जहां नन्होंने प्राचोन भारतीय भाषाओं में बहुविघ साहित्य-रचना
प्रस्तुत की है, वहां मध्यकालीन भारतीय भाषाओं के साहित्य भडार
को भी अपनी मूल्यवान कृतियों से मरा-पुरा किया है। यही तथ्य
आधुनिक भारतीय भाषाओं के सम्बन्ध में समझा. जाना चाहिए।
इस सुदीर्घकालू में जैन-समाज में इतने अधिक साहित्य-तपस्वी हुए हैं कि
उनकी नामावली प्रस्तुत करना मी कोई सहज कार्य नहीं है, फिर इसका
सम्पूर्ण प्यवेक्षण तो और भी कठिन हे ।
जैन मुनियों का उद्दद्य सद्घ्म का प्रचार करना मात्र रहा है, जिससे
कि जन-साधारण में सदभावना बनी रहे । इस उददद्य की समुचित पूर्ति
के लिए साहित्य एक उत्तम साघन है । फलस्वरूप जेन मुनि जीवन प्रयंन्त
विद्या-व्यसनी बने रहे हैं । उनके सामने सद्घर्म के अतिरिक्त अन्य कोई
सांसारिक स्वार्थ नहीं रहता । यही कारण है कि साहित्य की श्रीवृद्धि
एवं उसका संरक्षण उनके जीवन का पुनीत ब्रत बन जाता है और वे
इसका आमरण पालन करते हैं । इतनी निष्ठा के द्वारा तैयार किया
साहित्य-संचय अति विस्तृत एवं परमोपयोगी होना स्वाभाविक है ।
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