जिनहर्ष ग्रंथावली | Jinharsh Granthavali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jinharsh Granthavali by अगरचंद नाहटा - Agarchand Nahta

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahta

Add Infomation AboutAgarchandra Nahta

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मभिका भारतीय साहित्य को जेन विद्वानों का जो योगदान मिला है, उसकी गरिमा बहुत ऊची है । उनकी साहित्य-साधना प्राचोत काल से आज तक सतत प्रकादामान रही है और इसका अत्यन्त महत्वपूर्ण फल प्रास हुआ है। जहां नन्होंने प्राचोन भारतीय भाषाओं में बहुविघ साहित्य-रचना प्रस्तुत की है, वहां मध्यकालीन भारतीय भाषाओं के साहित्य भडार को भी अपनी मूल्यवान कृतियों से मरा-पुरा किया है। यही तथ्य आधुनिक भारतीय भाषाओं के सम्बन्ध में समझा. जाना चाहिए। इस सुदीर्घकालू में जैन-समाज में इतने अधिक साहित्य-तपस्वी हुए हैं कि उनकी नामावली प्रस्तुत करना मी कोई सहज कार्य नहीं है, फिर इसका सम्पूर्ण प्यवेक्षण तो और भी कठिन हे । जैन मुनियों का उद्दद्य सद्घ्म का प्रचार करना मात्र रहा है, जिससे कि जन-साधारण में सदभावना बनी रहे । इस उददद्य की समुचित पूर्ति के लिए साहित्य एक उत्तम साघन है । फलस्वरूप जेन मुनि जीवन प्रयंन्त विद्या-व्यसनी बने रहे हैं । उनके सामने सद्घर्म के अतिरिक्त अन्य कोई सांसारिक स्वार्थ नहीं रहता । यही कारण है कि साहित्य की श्रीवृद्धि एवं उसका संरक्षण उनके जीवन का पुनीत ब्रत बन जाता है और वे इसका आमरण पालन करते हैं । इतनी निष्ठा के द्वारा तैयार किया साहित्य-संचय अति विस्तृत एवं परमोपयोगी होना स्वाभाविक है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now