नियमसार | Niyamsar

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Niyamsar by श्री कुन्दकुन्दाचार्य - Shri Kundakundachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवाधिवार | [५ चहेंशपरय दिव्य ब्यनि, सो दो. म्रमस्त पदाथाकि विस्तारके सप्येनमें प्रबोण पा हागपम है । झाठरा तरष परमात्मा हथा बाद तर परमार्म स्वरूपसे भिन्न पदाय, ऐसे दो तरब ह आय! जब, ब्ीब, थास्द, पंप, सबर, निपरा थर मोझ ये लात रब हैं। इन ठत्तोंके मदन करनिबलि खागम हैं । झागमड़े द्वारा इन शर्तों स्वरूप जानना बहुत कायकारों दै। इसी डिये सत्यार्थ आागम लौर तत्वों यवाथ भद्धान ऋरनसे बम्यण्शीन होता दै। सबसे प्रथम यही इपारिय हैं कि बोतराम सबझरों भरे प्रदार धपन! दिदू मानें । जब अपने अतरगमों बाप्रझ निश्चय दो जायगा तब सदज् ही हाएम लौर ठरबोंका निश्चय जम जायगा / इमपीडिये नि्षोष भ्ाप्में भ्ंद्धा काना दी. सम्पक्तहा श्रषर चपाय है। यहां टीकाझार कहते हैं कि हे सब्ारके भपकफी मिटानवाढी निनदाणीरूप भगवती ! जो इप शोकमें तेरी भक्तिहो नहीं करता है बह सधार समुद्रके मभ्यों जो हु खरूगी प्राइ दे सके मुखमें चला जाता है. । छात्रों भाप्त भठारह दोपोंस रदित दोहा दे, इप्रछिये १८ बोपीकि नाम कहते हैं - छुइतगदमीरुरोसो, रागो मोदो चिंता नरा यजा मिंच्चू | स्वेद सद मदों रद, विद्ियणिद्ा लणुव्येगों ॥ ६ ॥ सम! ये झथ-कपर गाधामें बणन किया दुआ शाप १८ दोषोंस रदित होता है, दचच अरे छुधा, हुपा, मय, कोथ राग, मो, घिंहा, जरा, रोग, सत्य, परोना, से, मद रनि, थथ्वरय, निद्रा, त् म, छाइंच्ता ऐखे १८ महादाप नहीं दाते हैं। विशेष झय--अग्राता वेदनो कमरे तीथ्र तथा मे १ हद्यसे 'चित्तमें क्टेशरा दोन! सो सुना सर्याद सूपहो पीड़ा है । केबढी




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