सात साल | Saat Saal

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Saat Saal  by मुल्कराज आनन्द - Mulkraj Anand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साठ साव श्दे मुखोट पहन रखा था, उससे यह वाउ दितझुल स्पप्ट थी 1 झागे चप्तकर इस मुखोट ने एक छतिम विनश्रठा का रूप धारण कर लिया, जो उसके विकट स्वमाव की कूरठा को सफयठापूर्वक छिपाए रसदी थी श्रौर वह उपर चे सायु जान पड़ता था । उसके कान उपर से विद्ोने थे धौर उसके दारे में यट दाव प्रसिद्ध थी कि एक भीख मांगने धाएं सायु गे उसमे मां को उपदार में दिया था । यालों के शुप्क दार्गों शोर मदद कानों से बट मुन्दे एकदम दठान जान पड़ता था । दड़े लड़कों के साथ सेनठे समय चूकि दह प्राय: मेरी उपेसा करता या, इसलिए मैं भी उसकी शिकायत वा कोई अवसर द्वाय सै नहीं जाने देठा या ठाड़ि पिंता उसे दांटें, टपटें श्ौर मेरा बदला लें 1 वह श्रपने चेहरे पर विन म्रता, दोनता श्रौर सद्रठा वा जो किस भाव बनाए रखता या, उसने मुम्दे विगेप चिट थी, ब्ोंकि इसी कारण लोग उसे मतामानस सममते भर मुन्दे दुल्वी या वदमाथ कहते थे । सिफ एक थोवेन साहव थे, जिन्होंने उचे सही समस्या था, ब्योंदि मेरी “दुल्ती' उपाधि के मुकाबले में वे उसे 'ब्वंर' पुकारते ये श्रौर छोटे नन्द्ें माई पृथ्वी को “दिट्टी” कहते ये । मुम्दे इस बात से भी चिड़ थी कि विरादरी का जो मी श्रादमी श्राठा बढ गघेश के सिए सगाई का संदेश लाता, साय ही मिठाई भर मेवे होते, जिन्हें वह भ्रचेला ही सा सकता या । हम मु देखते रह जाते भौर “मोद बुद' मारने, जिसका श्रमिप्राव उस मिठाई से या जो मा लकड़ी के दढ़े संदूक में रखती थी धीर दोपटर बाद खाने को देवी थी । इसके श्रलावा वह घर की दिल्‍ली का श्राप हो मालिक बन बैठा था गौर मैं उचे छूने तर को ठरस जाता था । धद चूकि उसे देवता सममा जाता या, इसलिए बढ़ भ्रपने द्वेप को दनावटी देववापन में सफतठायूर्वेक दंगा सकता था, इचसे उसके प्रति सेरी श्रवज्ा भौर भी तोव्र हो जाती थी । अपने बड़े भाई हरीय के प्रति मेरे मन में श्रद्धानाव था 1 थायद इसलिए कि वह सम्वा श्री र दुवना या ध्रौर दोपदर के वाद जद व प्रसनी साइइल पर लाहौर से झाता तो मेरे लिए फर्लों झीर लिलोनों के उपदार साथ लाता झोर वह सुर अपनी साइकल पर झाये बदाकर स्कूल के हाकी-मेच में साय ले जाने का दादा जी हमेणा किए रखता । मुभ्धे उच ठमय उसके हाय की सफाई पर भी स्पर्घा होठी जब वह खुवी भ्रौर कंयों के चेन में छोटे मुनािमों के लड़कों को हरा देठा . मैं गेदन्यस्ते में उउदी दशदा का प्रयंघक या श्रौर उन छेतों दा म्रयंतक था




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