रामकाव्य की परम्परा में रामचन्द्रिका का विशिष्ट अध्ययन | Ram Kavya Ki Parampara Men Ramchandrika Ka Vishisht Adhyayan

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Ram Kavya Ki Parampara Men Ramchandrika Ka Vishisht Adhyayan by गार्गी गुप्त - Gargi Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कद इपभनवाव्य बी परम्परा सें रएमचरिट्रका बड़ दिधिप्ट झप्ययत प्रिय है। इच्छानुसार दिप्ण घपते तीनों सोगो में निवास बरसे हैं, मत: उनबों गंत्रपप्यप्ट' बी उपापि हे भी विमूधित किया है 1 ऋणेद थे विग्यु थी 'उदगाय', उपर्म' एवं 'विश्रग के विदेषणों शी सम्मानित बिया गया है । यह घपता प्रयोक चरण उठादे में नियमों या पालन सी गरते हैं ।* बहू नियग मै सादात्‌ जन्मदाता हैं। इस प्रकार तीनों लोक वा नायवत्व परने वास विष्णु समस्त लोगो के सानतम नायव हैं । दिच्णु प्रति के प्रहोक--कग्वेद में विप््ु बा रूप श्रसि में विसिरत सपने गरणों मे प्रतीक रूप में भी दुष्टिगोचर होता है। पाश्यात्य सथा पौररत्य झतेक विद्वानों के सतागुणार विष्णु सूर्य के श्रतीक हैं। विप्णपु ाव्द वी उत्पत्ति विश धातु थे हुई है जिसया भर्थ है व्याप्त होना । सूप प्रवाश रुप से सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त है भ्रतएय विष्णु सुर्य के प्रतीक हैं । डॉ० रागउुमार वर्मा ने सो भपने “ट्िन्दी साहित्य पे घालोचनात्क इतिहास में डॉ० मैवरामूलर मे धाधार पर इस सत मा श्रतिपादन पिया है 1 चिप्णु मी तीप्र गति के चारण डॉ० सजूमदार ने उनवों सूर्प का प्रसीव भागा है । धाबपूणि, डॉ० ए० ए० मैकडॉनल, डा० दासगुप्ता आदि बत्तिपय दिद्वानु पिप्णु के तीन डगो। वो सूर्य यी तीन स्थितियाँ उदय, मध्याह्म भोर अस्त के कारण सूर्य बा प्रतीक मानते हैं। डॉ० दास के मतायुसार विष्णु द्वादय भ्रादित्यों मे से एक आदिष्य है । घट उनको बनिप्टतम विस्तु योग्पतम श्रादित्य मानते हैं ।* ऋग्वेद में विष्णु का एक नाम धिपिवस्त है जिसका श्रव॑ श्री दुर्गाचायं ने “प्रात किरणों से युवत' बिया है। इस कारण डा० दासगुप्ता का भनुमान है वि उस्र समय विष्णु या तो सूयें के रूप माने जाते होगे श्रथवा उनमे सूयें के गुण बंतमान रहे होंगे 1 डॉ० राधाइप्यन के कथनानुसार सूर्य विष्णु के रूप में सलार बा पालन करता है ।* श्री बलदेव उपाध्याय कर विचार है कि सिप्णु झाराधगासी सतत नियाशील सूर्य के प्रतीक हैं । ऋग्वेद थे सूर्य के अन्य अनेक पर्यापवाची देवताश्री के सलाम सथा उनके प्रति श्रद्धांजलियाँ मित्तती हैं । उस समय पूपनु, सबितू, सावित्री, मित्र झादि अनेक देवता सूर्य के झर्थ में ग्रहण किये गये थे। इन देवताप्नो का उत्पत्ति-्सोत सदिग्य है परम्तु अनुमान के झाधार पर कहा जा सकता है. कि पूपन्‌ पढने चरयवाहा जाति का सूप देवता था. जो प्थज्नप्ट गलुभ्ों ब्तो. उतित मे बा प्रदर्शन बरत३ या + शित्र न्द का. रन कम्वेद ४ ₹ इक, ४ 1 रे. जन. डे. डनरबं-टुस्ट दे ३« डॉ० रामकुमार वर्मा द भवित्काल की अनुकमस्िका, ऐए० इश। ४० डॉन ए8०पन० दासगुप्ता : ए दिस्ट्री आफ इंडियन पिनामफी, दितीय साग, प्रष्ठ ४३४ ६ इन डॉ० राधाइप्लन: ददियन फिलासपी, पृष्ठ झ८४ 1




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