पत्नी प्रताप | Patni Pratap

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Patani Pratap by नारायणप्रसाद

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 चुद झुक १ प्रबेदा ९ जगठ च्झ्ौर सरस्वती ्ाती हैं 1 लच्मी-- बडे आश्ययं की बात हे सावित्री-- ऊच्मी जी तुम तो मुक्त से आरें थी फिर भीं उस चिमान में ज्ञाती दुई बाला को नहीं पहचाना लक्ष्मी-- देवी सावित्री क्या कहूँ में तो उसे मनुष्य देह से स्वर्ग की तरफ जाती हुई देख कर असम्मे में रह गई और कुछ न पूछ सको.. सा०्-- लो पार्वती जी आई इन से माठूम हो जाया पारवती का पाना चल आओ शिरिनन्दिनी जाओ अकेठी हो भा रहीं हो या०-- और क्या सेना छाती छ० -- सेना कहे को जिनके आधे अंग में हर दम घुसी रहती हो उनके कैसे चेन आयगां पा०-- तुम अपनी तो कहीं रमारमण करों अनुपस्थिति में तुम्हारा जी कौन वद्दढायगा ? स०-- अच्छी 1 बताओ न यो कहां रहे ? पा०-- वो कौन ?




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