प्रास - पुंज | Praas Punj

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Praas Punj by नारायणप्रसाद 'बेताब' - Narayan Prasad Betab

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निज निर्णय १२ नीर। वीर] तीरा चीर | জাহির श्र श्यायी ओर म्‌, व्‌, तू, चू, परिवर्तनशीलहैं। नल] दल। जल में न, ज, द, परिवर्ततीय और छकार खायी है। अमलके साथ विमरलकों प्रस करना अशुद्ध है, क्योंकि इसमें “शायगां ' नामका दोष्र आ पड़ा हैं 'मर! शब्द रोनोंमें एकही अर्थ वाला है (विशेष दोषके बयानमें: देखिये ) हां ऊमल-अमल प्रास शुद्ध है. क्योंकि यहां 'मल? एकही अथमें नहीं है। कमल +जलफो भी धार कर सकते है क्योंकि लकारके पूर्च रोनोंमें अकार है। कमर-+विमल भी प्रास हो सकेगा इनमें रीनों जगह भकः होते हए भी एकौ अथं नदीं है कमर एकही एष्व्‌ है, विमरु चि उपसगं पूर्वक मर .मिधित ই तो यहां ख्कार- १ पूवं अकार हीसे प्रयोजन है मलके पूर्व ( अ, इ ) से नही तात्पयं यह कि- स्थायी अंशके पूवे जो खर हो उसे बदलना न चाहिये यद्यपि इसके विरूद्ध उस्तादोंके कलाममें स्थायो अ'शके पूर्व घर बदल जानेकी मिसादें मौजूद है करते द्वो शिकवा तुम सुहागके वक्त । मैरवी गाते हो बिहागके वक्त ॥ ८ दागर-यादगारेदारा) „ अकद्रे इनर जस्त वायद्‌ महल बुलन्दीय नहसी मजो चं जहर (सादी--वीस्तां)




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