आत्म - सम्बोधन | Aatm Sambodhan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
334
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ११ उ
श्रीमती तुललाबाई ने एक पुत्र रत्न को जन्म दियाहै । उसीका यह
आनन्दोर्सव सनाया जा रहा है ५ पिता श्री शुल्लाव राय जी के
दर्ण करा कोई पारावार ही नदी ) चाचा बगेरह प्रसझता से फूल्ते
नहीं समाते | सभी ने मिलकर इस सौम्य मूति को नाम दिया
सदच मोदन ।
बालक मगबलाल१--
किसी को मन्द मु्कान से, किसी को अपनी सुन्दर चाल
ढाल से, श्रौर किसी को तुतल्लाती भाषा से रंजित करता हुआ
चालक चढ़ने लगा | परन्तु देव-- रेव से यह सब न देखा
गया। ३ बर्ष का वालक-चीमार पड़ा-ऐसा बीमार '” बचने की
कोई झाशा नहीं | परिवारजनों ने बालक के जीवित रहने की
्राशा से बालक का अशुभ नाम रखा 'सगनलाल” झर्थात मांगा
हुआ । पुण्य ने साथ दिया। मगनलाल के पेट की नसों पर गर्म
लोददा रख गया । वह चच गया । क्या पता था किसी को उस
समय कि बालक मगन का यह नाम सार्थक दी सिद्ध होगा
अर्थात् भविष्य में बह सदा ही अपने श्ात्मावलोकन 'में 'सगन'
रहा करेगा । समच्रयस्क चालकों में खेलतां परन्तु किसी बच्चे
का दिल न दुख जाय यह भावना सदा रहती । सदेव पराजित
चालक का पक्ष लेता जव कि दूसरे बालक उस बच्चे की हंसी
उड़ाते ।
विद्यार्थी मगनलालः--
अब कुछ श्ारे चलिये । मगनलाल ६ वर्ण के हुये । घर पर
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