श्री जैन नाटकीय रामायण | Shri Jain Natakiy Ramayan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
610
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand):* भाग प्रथम । (१३)
मुक्ते बना दो ।
फेकसी--नहीं बेटी तू नहीं मेंही वनंगी मेरी लाल, (उसे
उठाकर उसका मुँह चूमती है ) भेरी प्यारी चन्द्रवखा ।
. झस्मफण--ाद नी वाह तुम तो उसे ही गोदी चढाओो |
दमभी 'गोदी चढेंगे |
रावण--तो में भी गोदी चढहूंगा ।
विभीष्रणु--देखो भाई साहब श्राप क्बसे बढ़े हो । भाप
गोदी सतत चढो | माताजी को कष्ट होगा |
रावद्द--( विभीषण को गोंदी लेकर ) मेरे प्यारे विभीषणु
तुम बढ़े बर्मात्मा हो । ( ृम्मक्ण को मां से लेकर) श्ाओ
कुम्भकर्षु तुम भी मेरी, गोदी भा जाओ, मातानी- को कष्ट मतदों ।
( इतने हो में ऊपर, से बाजों की. आादाजे आती हैं बढुत
दल्ला सुनाई देता है, माशाश मार्ग से सेना जा रददी है
णवण के सिघाय तीनों माता ल्रे चिपट जाते हैं ।
रावण इढ़ता से ऊपर को देखता रहता है, चढ
अभी केवल बच्चा ही 'हैं। धीरे धीरे सब
वग्द। ोजाता है 1 )
राघाननमाताजी, बह श्ाऊाश माग से किसको सना
जारही है|
केकसी--वेटा ये वैश्रगण. की सेना. है । जो तेरी गोसी
का बेदा है ।
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