क्षणदा | Kshnada
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संस्क्रति का प्रश्न
दीर्घनिकास में सनय के भमदा उम्नति जीर अवनति की
ओर जाने के सम्बन्ध में कहां हुआ यह वाक्य आज की स्थिति
से घिनचिम साम्स रगता है न
* उन लोगो में एफ दुसरे फे प्रति तीज कोध, सीन प्रतिह्ठिसा
नी दर्भावना और सीय हिंसा दो भाव उत्पन्न होगा । साता
मे पुत्र को प्रति, पथ में साता के प्रति, भाई से चहिनि से प्रति,
यहिन में भाए के प्रसि, भाएँ से भार के प्रति तो पोध, तीथ
प्रतिदिसा तीज दुर्भासना जौर तीव्र हिसा सा लाव उताल होगा
जंसे संग को देखकर व्याथ में सो दोघ, तीव्र प्रतिषिया
तीन दुर्भावना और सीब्र द्विसा का भाय उत्पन्न होता है । वे एवां
टसरे सो संग समझने दगेंगे। उनवे हाथों में पले शरन होंगे ।
से उन सीथण पस्ती से एक दूसरे पं नर्ट परे ! सब उन सन्यों
में यु सोचेगे न से लौरो से पाम ने औरो वो सुख से शाम,
जन सपपर घने तण-वननक्षो में या नदी को दुमेस लद पर
था उन पर्थल पर बने हे पउ-फाय ग्याएर बहा जावे 1
पिर थे घने तसणनयदों से या सदी के उरगेम सटे परे था उसे
व
पर्यन पर वन ये फाडसर स्याफर सेगें। एफ साताह यहा
कर ग्द््न क्ग तु
कक किक जे
परत से घने. . . से सिनद परे पए सर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...