अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक | Apabhransh Kathakavya Evm Hindi Premakhyanak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
382
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रास्ताविक : ५
कत्कावतो, कामछता, मधघुकरमालती, रतनावली, छोता आदि जान कवि
कृत्त उनतीस प्रेमाख्यानों तथा न्रजहाँ, लेला-मजनतूँ, युसुफ-जुलेंखा आदि
की गणना की जा सकती है ।
उक्त हिन्दी प्रेमाख्यानक साहित्य के सम्बन्ध में एक बात जो उल्लें-
खनीय हैं वह यह कि हिन्दी प्रेमाख्यानको की दो घाराएँ रही हैं--
१ विशुद्ध भारतीय या हिन्दू प्रेमाख्यान, २ सुफो प्रेमारुपानक । इन
घाराओं का विद विवेचन प्रस्तुत प्रबन्ध के द्वितीय अध्याय में किया
गया है अतः यहाँ इनका उल्लेख मात्र ही पर्याप्त होगा । सुफी कवियों ने
मंसनवी पद्धति में रचनाएँ की । परिणामत भारतीय प्रेमाख्यानकों की
दौली में परिवत्तन भा गया । सुफियो के मतानुसार लौकिक प्रेम तथा
अलोकिक प्रेम मे कोई विज्षेष अन्तर नही होता । उनकी मान्यता है कि
इदक हुकीकी ( अलौकिक प्रेस ) के लिए इक मजाजी ( लोकिक प्रेम )
का होना भी अनिवारय॑ है :
इदक हकीकी के लिए इश्क सजाजी है जरूर ।
बैवसीला कही बन्दे को खुदा सिलता है ॥।
( एक सूफी कवि )
इन सूफी साधकों और कवियों ने भारतीय-अभारतीय पद्धतियो का
ध्यान न कर दोनो का मिश्रण कर दिया । इस प्रकार हिन्दी प्रेसाख्यानक
साहित्य एक नये काव्यरूप से विकसित हुआ । इसका एक कारण यह भी
था कि मध्यकालोन राजनीतिक उधल-पुथल के कारण प्रेमाख्यानको की
छोली पर विभिन्न प्रकार के प्रभाव पड़े ।
डा० शिवप्रसाद सिंह भारतीय प्रेमाख्यानको के विषय से लिखते है *
“भारतीय प्रेमार्यानक सम्पूर्ण एदियाई सस्कृति की प्रततिफठन पीठछिका
है। इनमे अनुस्यूत तत्त्वो के समाजशास्त्रीय, पुरातात्विक और ऐतिहासिक
अध्ययन का अभी मारम्भ हो हुआ है । यह विपुल ज्ञानराशि अनेकानेक
सुचीजनों के श्रम भौर दाक्ति का आह्वान करतो है ।”' वस्तुत हिल््दी
प्रेमाख्यान साहित्य मे विविध रूपों का मिश्रण होने से एक नये काव्य
रूप का जन्म हुमा है । हिन्दी साहित्य में पौराणिक प्रेमाख्यानों के आधार
पर भो कई रचनाएँ हुईं जिनके माध्यम से यह कहा जा सकता है कि
१. ढा० शिवप्रसाद सिंह, रसरतन की भूमिका, पृ० ७३.
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